सॉनेट
संसद
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यह संसद है लोकतंत्र की,
सत्य देखना यहाँ मना है,
झलक नहीं है जन-गण मन की,
अहंकार का शीश तना है।
यह संसद है प्रजातंत्र की,
सत्य बोलना यहाँ मना है,
जय जुमलों के महामंत्र की,
दलबंदी कोहरा घना है।
यह संसद है भ्रष्ट तंत्र की,
सुनना-कहना सत्य मना है,
जगह नहीं जन की बातों को,
सत्ता पाना लक्ष्य बना है।
तंत्र न यह जन-गण-मन सुनता।
यंत्र स्वार्थ के सपने बुनता।।
८-८-२०२३
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सॉनेट
मीरा कभी न हुई अतीत 
लगे हार भी उसको जीत 
दुनियादारी कहे अनीत 
वह गुंजाती हरि के गीत 
मीरा किंचित हुई न भीत 
जन्म-जन्म से हरि की क्रीत 
मिलन हेतु नित रहे अधीत 
आत्म हुई परमात्म प्रणीत 
मीरा को है वही सुनीत 
जग कहता है जिसे कुरीत 
८-८-२०२२ 
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नवगीत:
अब भी बहनें 
बाँध रही हैं राखी 
लायीं मिठाई भी
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भाई नहीं कर पायेगा 
अगर करे तो बेबस खुद भी 
अपनी जान गँवायेगा 
विधवा भौजी-माँ कलपेगी 
बच्चे होंगे बिलख अनाथ-
अख़बारों में छप अपराधी 
सहज जमानत पायेगा 
मानवतावादी-वकील मिल 
मुक्त करा घर भर लेंगे 
दूरदर्शनी चैनल पर 
अपराधी आ मुस्कायेगा 
बहनें कहाँ भूलती 
हैं भाई का स्नेह 
कलाई भी 
अब भी बहनें 
बाँध रही हैं राखी 
लायीं मिठाई भी
*
दुनिया का बाज़ार बड़ा है 
पुरा संस्कृति का यह देश 
विश्व गुरु को रोज पढ़ाते 
आतंकी घुस पाठ विशेष 
छप्पन इंची चौड़ी छाती
अच्छे दिन ले आयी है  
सैनिक अनशन पर बैठे 
पर शर्म न आयी अब तक लेश 
सैद्धांतिक सहमति पर 
अफसर कुंडलि मारे बैठे हैं 
नेता जी खुश विजय-पर्व पर  
सैनिक नोचें अपने केश 
बहनें दुबली हुई 
फ़िक्र से, भूखा  
सैनिक भाई भी 
अब भी बहनें 
बाँध रही हैं राखी 
लायीं मिठाई भी
*
व्यथा न सुनता कोई 
नौ-नौ आँसू रुला रही है प्याज   
भरी तिजोरी तेजडियों की 
चंदा दे, लूटें कर राज  
केर-बेर का संग, बना  
सरकार दोष दें पिछलों को 
वादों को जुमला कह भूले 
जनगण-मन पर  गिरती गाज 
प्रोफाइल है हाई, शादियाँ  
पाँच करें बेटी मारें 
मस्ती मौज मजा पाने को
बेच रहे हैं धनपति लाज  
बने माफिया  खुद 
जनप्रतिनिधि,     
संसद लख शर्माई भी 
अब भी बहनें 
बाँध रही हैं राखी 
लायीं मिठाई भी
*
लघु कथा
काल्पनिक सुख
*
'दीदी! चलो बाँधो राखी' भाई की आवाज़ सुनते ही उछल पडी वह। बचपन से ही दोनों राखी के दिन खूब मस्ती करते, लड़ते का कोई न कोई कारण खोज लेते और फिर रूठने-मनाने का दौर।
'तू इतनी देर से आ रहा है? शर्म नहीं आती, जानता है मैं राखी बाँधे बिना कुछ खाती-पीती नहीं। फिर भी जल्दी नहीं आ सकता।'
"क्यों आऊँ जल्दी? किसने कहा है तुझे न खाने को? मोटी हो रही है तो डाइटिंग कर रही है, मुझ पर अहसान क्यों थोपती है?"
'मैं और मोटी? मुझे मिस स्लिम का खिताब मिला और तू मोटी कहता है.... रुक जरा बताती हूँ.'... वह मारने दौड़ती और भाई यह जा, वह जा, दोनों की धाम-चौकड़ी से परेशान होने का अभिनय करती माँ डांटती भी और मुस्कुराती भी।
उसे थकता-रुकता-हारता देख भाई खुद ही पकड़ में आ जाता और कान पकड़ते हुई माफ़ी माँगने लगता। वह भी शाहाना अंदाज़ में कहती- 'जाओ माफ़ किया, तुम भी क्या याद रखोगे?'
'अरे! हम भूले ही कहाँ हैं जो याद रखें और माफी किस बात की दे दी?' पति ने उसे जगाकर बाँहों में भरते हुए शरारत से कहा 'बताओ तो ताकि फिर से करूँ वह गलती'...
"हटो भी तुम्हें कुछ और सूझता ही नहीं'' कहती, पति को ठेलती उठ पड़ी  वह। कैसे कहती कि अनजाने ही छीन गया है उसका काल्पनिक सुख।
८-८-२०१७
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मुक्तक 
मधु रहे गोपाल बरसा वेणु वादन कर युगों से 
हम बधिर सुन ही न पाते, घिरे हैं छलिया ठगों से 
कहाँ नटनागर मिलेगा,पूछते रणछोड़ से क्यों?
बढ़ चलें सब भूल तो ही पा सकें नन्हें पगों से 
*
रंज ना कर मुक्ति की चर्चा न होती बंधनों में 
कभी खुशियों ने जगह पाई तनिक क्या क्रन्दनों में? 
जो जिए हैं सृजन में सच्चाई के निज स्वर मिलाने 
'सलिल' मिलती है जगह उनको न किंचित वंदनों में 
8-8-2017 
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दोहा सलिलाः
संजीव
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प्राची पर आभा दिखी, हुआ तिमिर का अन्त
अन्तर्मन जागृत करें, सन्त बन सकें सन्त
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आशा जीवन श्वास है, ईश्वर हो न वियोग
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जो न उषा को चाह्ता, उसके फूटे भाग
कौन सुबह आकर कहे, उससे जल्दी जाग
*
लाल-गुलाबी जब दिखें, मनुआ प्राची-गाल
सेज छोड़कर नमन कर, फेर कर्म की माल
*
गाल टमाटर की तरह, अब न बोलना आप
प्रेयसि के नखरे बढ़ें, प्रेमी पाये शाप.
*
प्याज कुमारी से करे, युवा टमाटर प्यार
किसके ज्यादा भाव हैं?, हुई मुई तकरार
*
८.८.२०१४
दोहा सलिला:
अलंकारों के रंग-राखी के संग
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राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
राखी= पर्व, रखना.
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राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
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मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..
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अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
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रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
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बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..
बंध न = मुक्त रह, बंधन = मुक्त न रह  
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हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..
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कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
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मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना.
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गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
8-8-2014 
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गीत:
कब होंगे आजाद
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कब होंगे आजाद?
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गए विदेशी पर देशी अंग्रेज कर रहे शासन.
भाषण देतीं सरकारें पर दे न सकीं हैं राशन..
मंत्री से संतरी तक कुटिल कुतंत्री बनकर गिद्ध-
नोच-खा रहे भारत माँ को ले चटखारे स्वाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
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नेता-अफसर दुर्योधन हैं, जज-वकील धृतराष्ट्र.
धमकी देता सकल राष्ट्र को खुले आम महाराष्ट्र..
आँख दिखाते सभी पड़ोसी, देख हमारी फूट-
अपने ही हाथों अपना घर करते हम बर्बाद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
*
खाप और फतवे हैं अपने मेल-जोल में रोड़ा.
भष्टाचारी चौराहे पर खाए न जब तक कोड़ा.
तब तक वीर शहीदों के हम बन न सकेंगे वारिस-
श्रम की पूजा हो समाज में, ध्वस्त न हो मर्याद.
कब होंगे आजाद?कहो हमकब होंगे आजाद?....
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पनघट फिर आबाद हो सकें, चौपालें जीवंत.
अमराई में कोयल कूके, काग न हो श्रीमंत.
बौरा-गौरा साथ कर सकें नवभारत निर्माण-
जन न्यायालय पहुँच गाँव में विनत सुनें फ़रियाद-
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
*
रीति-नीति, आचार-विचारों, भाषा का हो ज्ञान.
समझ बढ़े तो सीखें रुचिकर, धर्म प्रीति विज्ञान.
सुर न असुर, हम आदम यदि बन पायेंगे इंसान-
स्वर्ग 'सलिल' हो पायेगा तब धरती पर आबाद.
कब होंगे आजाद?कहो हम कब होंगे आजाद?....
८-९-२०१०
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