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सोमवार, 14 अगस्त 2023

दो कवि  एक कुण्डलिया 

बादल बिजली शहर भर, चौमासे का राज
कितनी भी बारिश गिरे, फिर भी रुके न काज - पूर्णिमा वर्मन
फिर भी रुके न काज, यंत्र सम मानव चलता
जब तक मुँदे न आँख, आँख में सपना पलता
चाहत बनें प्रवीण, करें कोशिश हम हर पल
बिजली गिरे-गोल हो, गरजे-बरसे बादल - संजीव 'सलिल'
१४-९-२०२३
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