नव प्रयोग
(छंद- सॉनेट सोरठा)
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नमन शारदे मातु, मति दे आत्मा जगा दे।
खुद की कर पहचान, काम सभी निष्काम कर।
कोई रहे न गैर, जीवन सकल ललाम कर।।
सविता ऊषा प्रात, नव उजास मन समा दे।।
सोते बीता जन्म, माँ झकझोर जगा हमें।
अनुशासन का पाठ, भूल गए कर याद लें।
मातृभूमि पर प्राण, कर कुर्बां मुस्का सकें।।
करें प्रकृति से प्रेम, पौधारोपण कर हँसें।।
नाद अनाहद भूल, भवसागर में सिसकते।
निष्फल रहे प्रयास, बाधित हो पग भटकते।
माता! थामो बाँह, छंद सिखा दो अटकते।।
मैया! सुत नादान, बुद्धि-ज्ञान दे तार दे।
जग मतलब का मीत, जननी अविकल प्यार दे।
कर माया से मुक्त, जीवन जरा निखार दे।।
संजीव
६-१-२०२३, १०•२५
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मुक्तक
तमन्ना है तमन्ना को सकें, सुन-समझ मिलकर संग।
सुनें अशआर नज़्में चंद, बिखरे ग़ज़ल के भी रंग।।
सलिल संजीव हो पाकर सखावत, हुनर कुछ सीखे।
समझदारों की संगत के, तनिक लायक बने-दीखे।।
६-१-२०२३
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मुक्तक
विधान : ३०वर्ण, भ य र त म न स न भ य।
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अंबर निराला, नीलिमा में लालिमा घोले, मगन मन लीन चुप है, कुछ न बोले।
उषा भास्कर उजाला, कालिमा पी मस्त हो डोले, मनुज जग गीत नव गा, उठ अबोले।।
करे स्वागत उसी का, भाग्य जो नैना न हो मूँदे, डगर पर हो विचरता, हर सवेरे।
बहाए हँस पसीना, कामना ले काम ना छोड़े, फिसल कर हो सँभलता, सफल हो ले।
६-१-२०२१
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२०१८ की लघुकथाएँ: २
समानाधिकार
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"माय लार्ड! मेरे मुवक्किल पर विवाहेतर अवैध संबंध बनाने के आरोप में कड़ी से कड़ी सजा की माँग की जा रही है। उसे धर्म, नैतिकता, समाज और कानून के लिए खतरा बताया जा रहा है। मेरा निवेदन है कि अवैध संबंध एक अकेला व्यक्ति कैसे बना सकता है? संबंध बनने के लिए दो व्यक्ति चाहिए, दोनों की सहभागिता, सहमति और सहयोग जरूरी है। यदि एक की सहमति के बिना दूसरे द्वारा जबरदस्ती कर सम्बन्ध बनाया गया होता तो प्रकरण बलात्कार का होता किंतु इस प्रकरण में दोनों अलग-अलग परिवारों में अपने-अपने जीवन साथियों और बच्चों के साथ रहते हुए भी बार-बार मिलते औए दैहिक सम्बन्ध बनाते रहे - ऐसा अभियोजन पक्ष का आरोप है।
भारत का संविधान भाषा, भूषा, क्षेत्र, धर्म, जाति, व्यवसाय या लिंग किसी भी अधर पर भेद-भाव का निषेध कर समानता का अधिकार देता है। यदि पारस्परिक सहमति से विवाहेतर दैहिक संबंध बनाना अपराध है तो दोनों बराबर के अपराधी हैं, दोनों को एक सामान सजा मिलनी चाहिए अथवा दोनों को दोष मुक्त किया जाना चाहिए।अभियोजन पक्ष ने मेरे मुवक्किल के साथ विवाहेतर संबंध बनानेवाली के विरुद्ध प्रकरण दर्ज नहीं किया है, इसलिए मेरे मुवक्किल को भी सजा नहीं दी जा सकती।
वकील की दलील पर न्यायाधीश ने कहा- "वकील साहब आपने पढ़ा ही है कि भारत का संविधान एक हाथ से जो देता है उसे दूसरे हाथ से छीन लेता है। मेरे सामने जिसे अपराधी के रूप में पेश किया गया है मुझे उसका निर्णय करना है। जो अपराधी के रूप में प्रस्तुत ही नहीं किया गया है, उसका विचारण मुझे नहीं करना है। आप अपने मुवक्किल के बचाव में तर्क दे पर संभ्रांत महिला और उसके परिवार की बदनामी न हो इसलिए उसका उल्लेख न करें।"
अपराधी को सजा सुना दी गयी और सिर धुनता रह गया समानाधिकार।
**** salil.sanjiv@gmail.com, ७९९९५५९६१८ ****
नवगीत:
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उठो पाखी!
पढ़ो साखी
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हवाओं में शराफत है
फ़िज़ाओं में बगावत है
दिशाओं की इनायत है
अदाओं में शराफत है
अशुभ रोको
आओ खाखी
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अलावों में लगावट है
गलावों में थकावट है
भुलावों में बनावट है
छलावों में कसावट है
वरो शुभ नित
बाँध राखी
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खत्म करना अदावत है
बदल देना रवायत है
ज़िंदगी गर नफासत है
दीन-दुनिया सलामत है
शहद चाहे?
पाल माखी
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नवगीत:
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काल है संक्रांति का
तुम मत थको सूरज!
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दक्षिणायन की हवाएँ
कँपाती हैं हाड़
जड़ गँवा, जड़ युवा पीढ़ी
काटती है झाड़
प्रथा की चूनर न भाती
फेंकती है फाड़
स्वभाषा को भूल, इंग्लिश
से लड़ाती लाड़
टाल दो दिग्भ्रान्ति को
तुम मत रुको सूरज!
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उत्तरायण की फिज़ाएँ
बनें शुभ की बाड़
दिन-ब-दिन बढ़ता रहे सुख
सत्य की हो आड़
जनविरोधी सियासत को
कब्र में दो गाड़
झाँक दो आतंक-दहशत
तुम जलाकर भाड़
ढाल हो चिर शांति का
तुम मत झुको सूरज!
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मुक्तिका:
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गीतों से अनुराग न होता
जीवन कजरी-फाग न होता
रास आस से कौन रचाता?
मौसम पहने पाग न होता
निशा उषा संध्या से मिलता
कैसे सूरज आग न होता?
बाट जोहता प्रिय प्रवास की
मन-मुँडेर पर काग न होता
चंदा कहलाती कैसे तुम
गर निष्ठुरता-दाग न होता?
नागिन क्वांरी रह जाती गर
बीन सपेरा नाग न होता
'सलिल' न होता तो सच मानो
बाट घाट घर बाग़ न होता
६-१-२०२५
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