कृष्ण सोरठावली
जपो कृष्ण का नाम, रंजन कर आलोक दें।
श्वास-श्वास बृज-धाम, बाधा-संकट रोक दें।।
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कृष्ण करें आकृष्ट, दूर न कोई रह सके।
निबल दीन के इष्ट, अकथ कथा को कह सके।।
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कभी कुवल्यापीड़, क्रश न कृष्ण को कर सके।
वही रहे बेपीड़, जिसे कृष्ण पर क्रश रहे।।
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उन्हें मानिए एक, कृष्णा-कृष्ण न भिन्न हैं।
जाग्रत रखें विवेक, काम-अकाम अभिन्न हैं।।
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कृष्ण प्रकृति के दूत, ग्वाल कृषक जमुना सखा।
गोवर्धन गौ पूत, ममता-माखन नित चखा।।
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करें अशुभ का नाश, कृष्ण सतत बदलाव हैं।
काटें भव-भय पाश, शुभ-सत्कर्म प्रभाव हैं।।
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नंद-यशोदा लाल, कान्हा जन-मन में बसे।
वेणु करों में थाम, राधा मन मंदिर रहे।।
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