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सोमवार, 2 जनवरी 2023

सॉनेट, पद, राम सेंगर, दोहा, शिव, नवगीत, जनवरी

सॉनेट 
बसाहट
बसने की आहट आई है
दो हजार तेइस पहले दिन
हँसी-खुशी सबको भाई है
कलकल कलरव ताक धरना धिन

बसकर उजड़े नीड़ न कोई
जाग सके हर एक आत्मा
रौंदी जाए फसल न बोई
फूल-फल सके हे परमात्मा!

पर्वत नदियाँ राहें मंज़िल 
सभी जगह हो तेरी आहट
हे शंकर! आ कंकर में बस 
बस्ती बस्ती बसे बसाहट

हँसे पार्वती विघ्नेश्वर रच
नव खुशियाँ सुन सकें बुलाहट
संजीव
२-१-२०२३, ८•०६
जबलपुर 
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पद
प्रभु पीड़ित की पीर हरो
दुखहर्ता है नाम तुम्हारो, सकल शोक का शमन करो
शांत रहे मन खुद से खुद ही, कह पाए कुछ धैर्य धरो
तन कर पाए जो करना वह, साहस दे कह नहीं डरो
राह दिखाओ परमपिता हे!, मुझमें अपनी शक्ति भरो
करने योग्य कर सकूँ अविचल, प्रभु! मम सिर पर हाथ धरो
२-१-२०२३
•••
***
जन्म दिवस शुभकामना 
राम सेंगर

शतवर्षी हों, दें आशीष।
नवगीतों के आप महीश।।
लिखे सत्य ही कलम हमेशा
हम कंकर हैं आप गिरीश।।

जन्म २-१-१९४५, नगला आल, सिकन्दराऊ, हाथरस उत्तर प्रदेश।
प्रकाशित कृतियाँ:
१. शेष रहने के लिए, नवगीत, १९८६, पराग प्रकाशन दिल्ली।
२. जिरह फिर कभी होगी, २००१, अभिरुचि प्रकाशन दिल्ली।
३. एक गैल अपनी भी, २००९, अनामिका प्रकाशन, इलाहाबाद।
४. ऊँट चल रहा है, २००९, नवगीत, उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली।
५. रेत की व्यथा कथा, २०१३, नवगीत, उद्भावना प्रकाशन, दिल्ली।
नवगीत शतक २ तथा नवगीत अर्धशती के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर।
संपर्क: जाग्रति कॉलोनी, विनोबा वार्ड, पोस्ट जुहला, बरही रोड, कटनी ४८३५०१। चलभाष ९८९३२४९३५६।
*
शुभांजलि
*
'शेष रहने के लिए',
लिखते नहीं तुम।
रहे लिखना शेष यदि
थकते नहीं तुम।
नहीं कहते गीत 'जिरह
फिर कभी होगी'
मान्यता की चाह कर
बिकते नहीं तुम।
'एक गैल अपनी भी'
हो न जहाँ पर क्रंदन
नवगीतों के राम
तुम्हारा वंदन
*
'ऊँट चल रहा है'
नवगीत का निरंतर।
है 'रेत की व्यथा-कथा'
समय की धरोहर।
कथ्य-कथन-कहन की
अभिनव बहा त्रिवेणी
नवगीत नर्मदा का
सुनवा रहे सहज-स्वर।
सज रहे शब्द-पिंगल
मिल माथ सलिल-चंदन
***
२.१.२०१९

जनवरी
कब क्या?
*
१. ईसाई नव वर्ष।
३. सावित्री बाई फुले जयंती।
४. लुई ब्रेक जयंती।
५. परमहंस योगानंद जयंती।
१०. विश्व हिंदी दिवस।
१२. विवेकानंद / महेश योगी जयन्ती, युवा दिवस।
१३. गुरु गोबिंद सिंह जयंती।
१४. मकर संक्रांति, बीहू, पोंगल, ओणम।
१५. थल सेना दिवस, कुंभ शाही स्नान।
१९. ओशो महोत्सव।
२०. शाकंभरी पूर्णिमा।
२३. नेताजी सुभाषचंद्र बोस जयंती।
२६. गणतंत्र दिवस।
२७. स्वामी रामानंदाचार्य जयंती।
२८. लाला लजपत राय जयंती।
३०. म. गाँधी शहीद दिवस, कुष्ठ निवारण दिवस।
३१. मैहर बाबा दिवस।
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साहित्यकार / कलाकार:
सर्व श्री / सुश्री / श्रीमती
१. अर्चना निगम ९४२५८७६२३१
त्रिभवन कौल स्व.
राकेश भ्रमर ९४२५३२३१९५
विनोद शलभ ९२२९४३९९००
सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' ९८९३२६६०१४
डॉ. जगन्नाथ प्रसाद बघेल ९८६९०७८४८५
२. राम सेंगर ९८९३२४९३५६
राजकुमार महोबिआ ७९७४८५१८४४
राजेंद्र साहू ९८२६५०६०२५
४. शिब्बू दादा ८९८९००१३५५
८. पुष्पलता ब्योहार ०७६१ २४४८१५२
१२. आदर्श मुनि त्रिवेदी ९४२५३६२९८५
संतोष सरगम ८८१५०१५१३१
१५. अशोक झरिया ९४२५४४६०३०
१६. हिमकर श्याम ८६०३१७१७१०
२३. अशोक मिजाज ९९२६३४६७८५
२६. उमा सोनी 'कोशिश' ९८२६१९१८७१
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***
एक दोहा
शुभ रजनी शशि से कहा,
सिंह हुआ नाराज.
किसकी शामत आ गई,
करता मेरा काज.
***
शिव वंदना : एक दोहा अनुप्रास का
*
शिशु शशि शीश शशीश पर, शुभ शशिवदनी-साथ
शोभित शशि सी शशिमुखी, मोहित शिव शशिनाथ
*
शशीश अर्थात चन्द्रमा के स्वामी शिव जी के मस्तक पर बाल चन्द्र शोभायमान है, चन्द्रवदनी चन्द्रमुखी पावती जी उनके साथ हैं जिन्हें निहारकर शिव जी मुग्ध हो रहे हैं.
*
***
नवगीत
घोंसला
*
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
*
आँधियाँ आयें न डरना
भीत हो,जीकर न मरना
काँपती हों डालियाँ तो
नीड तजकर नहीं उड़ना
मंज़िलें तो
फासलों को नापते
पग को मिली हैं
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
*
संकटों से जूझना है
हर पहेली बूझना है
कोशिशें करते रहे जो
उन्हें राहें सूझना है
ऊगती उषा
तभी जब साँझ
खुद हंसकर ढली है
घोंसले में
परिंदे ही नहीं
आशाएँ बसी हैं
*
१२-१-२०१६
***
नवगीत:
संजीव
*
खुशियों की मछली को
चिंता का बगुला
खा जाता है
.
श्वासों की नदिया में
आसों की लहरें
कूद रहीं हिरणी सी
पलभर ना ठहरें
आँख मूँद मगन
उपवासी साधक
ठग जाता है
.
पथरीले घाटों के
थाने हैं बहरे
देख अदेखा करते
आँसू-नद गहरे
एक टाँग टाँग खड़ा
शैतां, साधू बन
डट खाता है
.
श्वेत वसन नेता से
लेकिन मन काला
अंधे न्यायलय ने
सच झुठला डाला
निरपराध फँस जाता
अपराधी झूठा
बच जाता है
***
नवगीत
.
हाथों में मोबाइल थामे
गीध दृष्टि पगडंडी भूली
भटक न जाए
.
राजमार्ग पर जाम लगा है
कूचे-गली हुए हैं सूने
ओवन-पिज्जा का युग निर्दय
भटा कौन चूल्हे में भूने?
महानगर में सतनारायण
कौन कराये कथा तुम्हारी?
गोबर बिन गणेश का पूजन
कैसे होगा बिपिनबिहारी?
कलावती की कथा सुन रहे
लीला की लीला मन झूली
मटक न आए
.
रावण रखकर रूप राम का
करे सिया से नैन मटक्का
मक्का जाने खों जुम्मन नें
बेंच दई बीजन कीं मक्का
हक्का-बक्का खाला बेबस
बिटिया बारगर्ल बन सिसके
एड्स बाँट दूँ हर गाहक को
भट्टी अंतर्मन में दहके
ज्वार-बाजरे की मजबूरी
भाटा-ज्वार दे गए सूली
गटक न पाए
.
***
नवगीत:
.
अपनी-अपनी
मर्यादा कर तार-तार
होते प्रसन्न हम
राम बचाये
.
वृद्धाश्रम-बालाश्रम और अनाथालय कुछ तो कहते हैं
महिलाश्रम की सुनो सिसकियाँ आँसू क्यों बहते रहते हैं?
राम-रहीम बीनते कूड़ा रजिया-रधिया झाड़ू थामे
सड़क किनारे बैठे लोटे
बतलाते
कितने विपन्न हम?
राम बचाये
.
अमराई पर चौपालों ने फेंका क्यों तेज़ाब पूछिए?
पनघट ने खलिहानों को क्यों नाहक भेजा जेल बूझिए?
सास-बहू, भौजाई-ननदी, क्यों माँ-बेटी सखी न होतीं?
बेटी-बेटे में अंतर कर
मन से रहते
सदा खिन्न हम
राम बचाये
.
दुश्मन पर कम, करें विपक्षी पर क्यों ज्यादा प्रहार हम?
नगद-बचत की भूल सादगी चमक-दमक वरते उधार हम
मेले नौटंकी कठपुतली कजरी आल्हा फागें बिसरे
माल जा रहे माल लुटाने,
क्यों न भीड़ से
हुए भिन्न हम?
राम बचाये
.
(३०.१२.२०१४, कटनी, ८.००, दयोदय एक्सप्रेस, बी २ /१७, जयपुर-जबलपुर)

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