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शनिवार, 21 जनवरी 2023

सोरठा, कृष्ण, सॉनेट, यमक, मुक्तिका, नवगीत, मुक्तक

सोरठा सलिला 
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दृष्टि देखती द्वैत, श्याम-गौर दो हैं नहीं। 
आत्म अमिट अद्वैत, दोनों में दोनों कहे।। 
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कान्ह कन्हैया लाल, कान्हा लला गुपाल जू। 
श्याम कृष्ण गोपाल, गिरिधर मुरलीधर भजो।। 
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नटखट नटवर नैन, नटनागर के जब मिलें। 
छीने मन का चैन, मिलन बिना बेचैन कर।। 
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वेणु हाथ आ; अधर चढ़, रही गर्व से ऐंठ। 
रेणु चरण छू कह रही, यहाँ न तेरी पैठ।। 
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होता भव से पार, कृष्ण कांत जिसके वही। 
वह सकता भव-तार, इष्ट जिसे हो राधिका।। 
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२१-१-२०२३
सॉनेट 
संकल्प
जैसी भी है यह दुनिया 
हमको है रहकर जीना
 शीश उठा तानें सीना 
काँपे कभी न कहीं जिया 

संकट जब जो भी आएँ 
टकराकर हम जीतेंगे 
विष भी हँसकर पी लेंगे
 गीत सफलता के गाएँ 

छोटा कद हौसला बड़ा 
वार करेंगे हम तगड़ा र
ह न सकेगा शत्रु खड़ा 

हिम्मत कभी न हारेंगे 
खुद को सच पर वारेंगे 
सारे जग को तारेंगे 
२१-१-२०२३
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अभिनव प्रयोग:
यमकमयी मुक्तिका:
*
नहीं समस्या कोई हल की.
कोशिश लेकिन रही न हलकी..
विकसित हुई सोच जब कल की.
तब हरि प्रगटें बनकर कलकी..
सुना रही है सारे बृज को
छल की कथा गगरिया छलकी..
बिन पानी सब सून हो रहा
बंद हुई जब नलकी नल की..
फल की ओर निशाना साधा
कौन करेगा फ़िक्र न फल की?
नभ लाया चादर मखमल की.
चंदा बिछा रहा मलमल की..
खल की बात न बट्टा सुनता.
जब से संगत पायी खल की..
श्रम पर निष्ठां रही सलिल की
दुनिया सोचे लकी-अनलकी..
कर-तल की ध्वनि जग सुनता है.
'सलिल' अनसुनी ध्वनि पग-तल की..
२३-२-२०११
***
नवगीत:
*
मिली दिहाड़ी
चल बाजार
चावल-दाल किलो भर ले-ले
दस रुपये की भाजी
घासलेट का तेल लिटर भर
धनिया-मिर्ची ताजी
तेल पाव भर फ़ल्ली का
सिंदूर एक पुडिया दे
दे अमरूद पांच का, बेटी की
न सहूं नाराजी
खाली जेब पसीना चूता
अब मत रुक रे!
मन बेजार
निमक-प्याज भी ले लऊँ तन्नक
पत्ती चैयावाली
खाली पाकिट हफ्ते भर को
फिर छाई कंगाली
चूड़ी-बिंदी दिल न पाया
रूठ न मो सें प्यारी
अगली बेर पहलऊँ लेऊँ
अब तो दे मुस्का री!
चमरौधे की बात भूल जा
सहले चुभते
कंकर-खार
***
अभिनव प्रयोग:
नवगीत :
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मिलती काय न ऊँचीवारी
कुरसी हमखों गुइयाँ
.
हमखों बिसरत नहीं बिसारे
अपनी मन्नत प्यारी
जुलुस, विशाल भीड़ जयकारा
सुविधा-संसद न्यारी
मिल जाती, मन की कै लेते
रिश्वत ले-दे भैया
.
पैलां लेऊँ कमीशन भारी
बेंच खदानें सारी
पाछूं घपले-घोटाले सौ
रकम बिदेस भिजा री
होटल फैक्ट्री टाउनशिप
कब्जा लौं कुआ तलैया
.
कौनौ सैगो हमरो नैयाँ
का काऊ सेन काने?
अपनी दस पीढ़ी खें लाने
हमें जोड़ रख जानें
बना लई सोने की लंका
ठेंगे पे राम-रमैया
.
(बुंदेली लोककवि ईसुरी की चौकड़िया फागों की लय पर आधारित, प्रति पद १६-१२ x ४ पंक्तियाँ, महाभागवत छंद )
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मुक्तक:
*
चिंता न करें हाथ-पैर अगर सर्द हैं
कुछ फ़िक्र न हो चहरे भी अगर ज़र्द हैं
होशो-हवास शेष है, दिल में जोश है
गिर-गिरकर उठ खड़े हुए, हम ऐसे मर्द हैं.
*
जीत लेंगे लड़ के हम कैसा भी मर्ज़ हो
चैन लें उतार कर कैसा भी क़र्ज़ हो
हौसला इतना हमेशा देना ऐ खुदा!
मिटकर भी मिटा सकूँ मैं कैसा भी फ़र्ज़ हो
२१-१-२०१५
***

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