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सोमवार, 2 जनवरी 2023

राधोपनिषद

राधोपनिषद
*
ॐ ऊर्ध्वरेता महर्षियों,
सनक आदि ने ब्रह्मा जी से
स्तुति कर पूछा- 'हे भगवन!
सर्व प्रमुख हैं कौन देवता?
शक्ति कौन सी उनमें कहिए?'

ब्रह्मा बोले - ' पुत्रों सुन लो,
किंतु किसी से कभी न कहना
है रहस्य अत्यंत गुप्त यह,
मात्र ब्रह्मज्ञानी गुरुभक्तों को
तुम यह बतला सकते हो,
कहा अन्य से, पाप लगेगा।

परमदेव श्रीकृष्ण मात्र हैं।
छह ऐश्वर्यों से भूषित वे,
गोप-गोपियों से सेवित हैं।
आराधित वृंदा देवी से,
वृंदावन के स्वामी हैं वे।

एकमात्र वे ही सर्वेश्वर,
रूप उन्हीं का नारायण हैं
जो स्वामी ब्रह्माण्डों के हैं।
कृष्ण पुरातन प्रकृति से भी
और नित्य हरि भी वे ही हैं।

आह्लादिनी संधिनी इच्छा
ज्ञान क्रियादि शक्तियाँ उनकी।
आह्लादिनी प्रमुख हैं सबसे
अन्तरंगभूता श्री राधा।
इनकी आराधना कृष्ण जी,
करते सदा इसलिए 'राधा'।

राधा गांधर्वा कहलातीं,
बृज की जो रमणियाँ सारी,
द्वारकावासी कृष्ण महिषियाँ
और रमा भी अंश इन्हीं की।
रस सागर श्रीकृष्ण-राधिका
एक, हुए दो क्रीड़ा करने।

सर्वेश्वरी, सनातन विद्या,
हैं हरि की श्री राधा रानी।
देवी अधिष्ठात्री वे ही हैं
एकमात्र कृष्ण-प्राणों की।

करें वेद स्तुति एकांत में
महिमा कह न सकूँ जीवन में,
जिस पर हों कृपालु श्रीराधा
परम धाम वह पा जाता है।

जो न जानता श्री राधा को
और कृष्ण जी को आराधे
महामूर्ख है, महामूढ़ है।
नाम राधिका जी के गातीं
श्रुतियाँ सभी निरंतर पल-पल।

राधा रम्य रमा रासेश्वरी
कृष्ण-मंत्र अधिदेव ईश्वरी
सर्वाद्या राधिका रुक्मिणी
गोपी वृंदावनविहारिणी
सर्ववन्द्या वृंदाराध्या हे!
अशेष गोपीमण्डल पूज्या
सत्या सत्यपरा सत्यभाभा
मूलप्रकृति श्रीकृष्णवल्लभा
गांधर्वा वृषभानुसुता हे!
आरभ्या राधिका परमेश्वरी
पूर्णचंद्रनिभानना पूर्णा
परात्परा हे भुक्तिमुक्तिदा!
भवव्याधिविनाशिनी जय-जय।

नाम-पाठ कर जीव मुक्त हों
श्री ब्रह्मा भगवान ने कहा।
संधिनी शक्ति-धाम विवरण सुन-
हो परिणित भूषण शैया अरु
आसन भृत्य आदि बन जाती।
मृत्यु लोक अवतार के समय
मातु-पितादि रूप बन जाती,
कारण बनती अवतारों का।

ज्ञान शक्ति क्षेत्रज्ञ शक्ति है,
इच्छा-माया शक्ति भी यही।
सत्य रजस तम जड़ बहिरंगी
ईश दृष्टि पड़ने पर करती
रचना अगणित ब्रह्माण्डों की।

माया और अविद्यारूपी
बने जीव बंधन भी यह ही।
क्रिया शक्ति यह ही कहलाती
कहते लीला शक्ति इसी को।
पढ़ें अव्रती अगर उपनिषद
यह तो व्रती आप हो जाते।

अग्नि-पवन सुत, सर्व पूत हो
राधाकृष्ण निकट हो जाते।
और जहाँ तक दृष्टि डालते
वे सबको पवित्र कर देते।

ॐ तत्सत

ऋग्वेदीय राधोपनिषद समाप्त।।
२-१-२०२३
***
राधिका छंद
*
छंद-लक्षण: जाति महारौद्र , प्रति चरण मात्रा २२ मात्रा, यति १३ - ९ ।
लक्षण छंद:
सँग गोपों राधिका के / नंदसुत - ग्वाला
नाग राजा महारौद्र / कालिया काला
तेरह प्रहार नौ फणों / पर विष न बाकी
गंधर्व किन्नर सुर नरों / में कृष्ण आला
*
राधिका बाईस कला / लख कृष्ण मोहें
तेरह - नौ यति क़ृष्ण-पग / बृज गली सोहें
भक्त जाते रीझ, भय / से असुर जाते काँप
भाव-भूखे कृष्ण कण / कण जाते व्याप
राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त जी ने साकेत में राधिका छंद का प्रयोग किया है।
हा आर्य! भरत का भाग्य, रजोमय ही है,
उर रहते उर्मि उसे तुम्हीं ने दी है.
उस जड़ जननी का विकृत वचन तो पाला
तुमने इस जन की ओर न देखा-भाला।
***



प्रात नमन
*
मन में लिये उमंग पधारें राधे माधव
रचना सुमन विहँस स्वीकारें राधे माधव
राह दिखाएँ मातु शारदा सीख सकें कुछ
सीखें जिससे नहीं बिसारें राधे माधव
हों बसंत मंजरी सदृश पाठक रचनाएँ
दिन-दिन लेखन अधिक सुधारें राधे-माधव
तम घिर जाए तो न तनिक भी हैरां हों हम
दीपक बन दुनिया उजियारें राधे-माधव
जीतेंगे कोविंद न कोविद जीत सकेगा
जीवन की जय-जय उच्चारें राधे-माधव
***
प्राची ऊषा सूर्य मुदित राधे माधव
मलय समीरण अमल विमल राधे माधव
पंछी कलरव करते; कोयल कूक रही
गौरैया फिर फुदक रही राधे माधव
बैठ मुँडेरे कागा टेर रहा पाहुन
बनकर तुम ही आ जाओ राधे माधव
सुना बजाते बाँसुरिया; सुन पायें हम
सँग-सँग रास रचा जाओ राधे माधव
मन मंदिर में मौन न मूरत बन रहना
माखन मिसरी लुटा जाओ राधे माधव
*
२१-४-२०२०


राधा धारा प्रेम की....

*
राधा धारा प्रेम की, श्याम स्नेह-सौगात.
बरसाने में बरसती, बिन बरसे बरसात..

राधा धारा भक्ति की, कृष्ण कर्म-पर्याय.
प्रेम-समर्पण रुक्मिणी, कृष्णा चाहे न्याय.

माखनचोर चुरा रहा, चित बनकर चितचोर.
सुनते गोपी-गोपिका नित नेहिल नगमात..

जो बोया सो काटता, विषधर करिया नाग.
ग्वाल-बाल गोपाल के असहनीय आघात..

आँख चुरा मुँह फेरकर, गया दिखाकर पीठ.
नहीं बेवफा वफ़ा ने, बदल दिये हालात.

तंदुल ले त्रैलोक्य दे, कभी बढ़ाए चीर.
गीता के उपदेश में, भरे हुए ज़ज्बात..

रास रचाए वेणुधर, ले गोवर्धन हाथ,
देवराज निज सिर धुनें, पा जनगण से मात..

पट्टी बाँधी आँख पर, सच से ऑंखें फेर.
नटवर नन्दकिशोर बिन, कैसे उगे प्रभात?

सत्य नीति पथ पर चले, राग-द्वेष से दूर.
विदुर समुज्ज्वल दिवस की, कभी न होती रात..

नेह नर्मदा 'सलिल' की, लहर रचाए रास.
राधा-मीरा कूल दो, कृष्ण-कमल जलजात..

कुञ्ज गली में फिर रहा, कर मन-मंदिर वास.
हुआ साँवरा बावरा, 'सलिल' सृष्टि-विख्यात..

***









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