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सोमवार, 6 जुलाई 2020

चिंतन ज्योति

चिंतन
ज्योति
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- ज्योति से ज्योति जलाते चलो...
- ज्योति जलेगी तो आलोक फैलेगा, तिमिर मिटेगा।
- ज्योति तब जलेगी जब बाती, स्नेह (तेल) और दीपक होगा।
- बाती बनाने के लिए कपास उगाने, तेल के लिए तिल उगाने और दीप बनाने के लिए अपरिहार्य है माटी।
- माटी ही मिटकर दीप, तेल और बाती में रूपांतरित होती है तथापि इन तीनों से तम नहीं मिटता, आलोक नहीं फैलता।
- माटी का मिटना सार्थक तब होता है जब अग्नि ज्योतित होती है।
- अग्नि बिना पवन के ज्योतित नहीं हो सकती।
- माटी पानी को आत्मसात किए बिना दीपक नहीं बन सकती।
- पानी पाए बिना न तो कपास उत्पन्न हो सकती है न तिल।
- आकाश न हो तो प्रकाश कहाँ फैले?
- माटी, पानी, पवन, आकाश और अग्नि होने पर भी उन्हें रूपांतरित और समन्वित करने के लिए मनुष्य का होना और उद्यम करना जरूरी है।
- उद्यम करने के लिए चाहिए मति या बुद्धि।
- मति रचने की ओर प्रवृत्त तभी होगी जब उसे जग और जीवन में रस हो।
- रसवती मति सरसवती होकर सत-शिव-सुंदर का सृजन करती है और सरस्वती के रूप में सुर, नर, असुर, वानर, किन्नर सबकी पूज्य और आराध्य होती है।
- वह सरस्वती ही विधि (ब्रह्मा), हरि (विष्णु) और हर (महेश) की नियामक है।
- सरस्वती ही त्रिदेवों की आत्मशक्ति के रूप में उन्हें सक्रिय करती है।
- शक्ति का अस्तित्व शक्तिवान को बिना संभव नहीं। यह शक्तिवान निर्गुण है, निराकार है।
- निराकार का चित्र नहीं हो सकता अर्थात चित्र गुप्त है।
- निराकार ही सगुण-साकार होकर सकल सृष्टि में अभिव्यक्त होता है।
- निवृत्ति और प्रवृत्ति का सम्मिलन हुए बिना रचना नहीं होती।
- रचनाकार ही खुद को भाषा, भूषा, लिंग, क्षेत्र, विचारधारा को आधार पर विभाजित कर मठाधीशी करने लगे तो सरस्वती कैसे प्रसन्न हो सकती है?
- विश्वैक नीड़म्, वसुधैव कुटुम्बकम्, अयमात्मा ब्रह्म, अहं ब्रह्मास्मि और शिवोsहम् की विरासत पाकर भी जीवन में रस का अभाव अनुभव करना विडंबना ही है।
- आइए! रसाराधना कर श्वास-श्वास को रसवती, सरसवती बनाएँ ।
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संजीव

६-७-२०२० 

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