निर्दयी कोरोना
मधु प्रधान 'मधुर'
*
बडा ही निर्दयी है कोरोना तू
लाखों की जान लेने वाला
जायेगी कब तेरी ये जान
लगेगा कब यह संसार
चलायमान है
सबकी खुशियां गटक गया
जैसे चूरन का सेवन कर गया
बिन बुलाए मेहमान सा
आकर अटक गया है
नहीं चाहिए नहीं किसी को
दुष्ट तेरा यह सानिध्य
आज सारा संसार कर
रहा हा हा कार है
बस जा यहां से तू
उपकार इतना कर हम सब पर
बुजुर्गो के पीछे पड़ा तू भी है
क्यों सबकी बदुआ लेने पर है तुला
सारी गलियां शांत हो गई
सिनेमा घर पकड़ कर
बैठे है अपना सर
दुकाने सब खाली हो गयी
कंगाली के बादल घिरने को है
क्यों कड़ी परीक्षा ले रहा है
दांव अपना खेल रहा
मानव से पंगा ले रहा है
जहां क्षण में मात खायेगा
अपने अस्तित्व का समूचा
नाश तू करवायेगा पछतायेगा।।
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