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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

कुंडल छंद

छंद बहर का मूल है: ४
कुंडल छंद
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छंद परिचय:
बाईस मात्रिक महारौद्र जातीय कुंडल छंद
चौदह वार्णिक शर्करी जातीय छंद।
संरचना: SIS ISI SIS ISI SS
सूत्र: रजरजगग।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं फ़ऊलुं।
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प्रात, शाम, रात रोज आप ही सुहाए
मौन हेरता रहा न आज आप आए
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छंद-गीत, राग-रीत कौन सीखता है?
शारदा कृपा करें तभी न सीख पाए
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है कहाँ छिपा हुआ, न चाँद दीखता है
दीप बाल-बाल रात ही न हार जाए
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दूर बैठ ताकती , न भू भुला सकी है
सूर्य रश्मि-रूप धार श्वास में समाए
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आसमान छेदता, दिशा-हवा न रोके
कामदेव चित्त को अशांत क्यों बनाये?
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प्रेमिका न ज्ञान-दान प्रेम चाहती है
रुठती न, रूठना दिखा-दिखा खिझाए
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हारता न, हार-हार प्रेम जीतता है
जीतता न जीत-जीत, प्रेम ही हराए
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१६.४.२०१७
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