त्वरित प्रतिक्रिया
कृष्ण-मृग हत्याकांड 
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मुग्ध हुई वे हिरन पर, किया न मति ने काम। 
हरण हुआ बंदी रहीं, कहा विधाता वाम ।।
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मुग्ध हुए ये हिरन पर, मिले गोश्त का स्वाद। 
सजा हुई बंदी बने, क्यों करते फ़रियाद?
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देर हुई है अत्यधिक, नहीं हुआ अंधेर।
सल्लू भैया सुधरिए, अब न कीजिए देर।।
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हिरणों की हत्या करी, चला न कोई दाँव।
सजा मिली तो टिक नहीं, रहे जमीं पर पाँव।।
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नर-हत्या से बचे पर, मृग-हत्या का दोष।
नहीं छिप सका भर गया, पापों का घट-कोष।।
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आहों का होता असर, आज हुआ फिर सिद्ध।
औरों की परवा करें, नर हो बनें न गिद्ध।।
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हीरो-हीरोइन नहीं, ख़ास नागरिक आम। 
सजा सख्त हो तो मिले, सबक भोग अंजाम  ।।  
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अब तक बचते रहे पर, न्याय हुआ इस बार।
जो छूटे उन पर करे, ऊँची कोर्ट विचार।।
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फिर अपील हो सभी को, सख्त मिल सके दंड। 
लाभ न दें संदेह का, तब सुधरेंगे बंड।।
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न्यायपालिका से विनय करें न इतनी देर। 
आम आदमी को लगे, होता है अंधेर।।
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सरकारें जागें न दें, सुविधा कोई विशेष। 
जेल जेल जैसी रहे, तनहा समय अशेष।।
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६-४-२०१८
 
 
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