एक रचना
*
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
सिर उठाये खड़े हो तुम
हर विपद से लड़े हो तुम
हरितिमा का छत्र धारे
पुहुप शत-शत जड़े हो तुम
तना सीधा तना हर पल
सैनिकों से कड़े हो तुम
फल्लियों के शस्त्र थामे
योद्धवत अड़े हो तुम
एकता की विरासत के
पक्षधर सच बड़े हो तुम
तमस-आगी,
सहे बागी
चमकते दामी कनक से
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
जमीं में हो जड़ जमाये
भय नहीं तुमको सताये
इंद्रधनुषी तितलियों को
संग तुम्हारा रास आये
अमलतासी सुमन सज्जित
छवि मनोहर खूब भाये
बैठ गौरैया तुम्हारी
शाख पर नग्मे सुनाये
दूर रहना मनुज से जो
काटकर तुमको जलाये
उषा जागी
लगन लागी
लोरियाँ गूँजी खनक से
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
[मुक्तिका गीत,मानव छंद]
*
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
सिर उठाये खड़े हो तुम
हर विपद से लड़े हो तुम
हरितिमा का छत्र धारे
पुहुप शत-शत जड़े हो तुम
तना सीधा तना हर पल
सैनिकों से कड़े हो तुम
फल्लियों के शस्त्र थामे
योद्धवत अड़े हो तुम
एकता की विरासत के
पक्षधर सच बड़े हो तुम
तमस-आगी,
सहे बागी
चमकते दामी कनक से
तुम विरागी,
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
जमीं में हो जड़ जमाये
भय नहीं तुमको सताये
इंद्रधनुषी तितलियों को
संग तुम्हारा रास आये
अमलतासी सुमन सज्जित
छवि मनोहर खूब भाये
बैठ गौरैया तुम्हारी
शाख पर नग्मे सुनाये
दूर रहना मनुज से जो
काटकर तुमको जलाये
उषा जागी
लगन लागी
लोरियाँ गूँजी खनक से
वीतरागी
विदेही राजा जनक से
*
[मुक्तिका गीत,मानव छंद]
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