कुंडलिनी
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देख रहे गिरजेश हँस, गिरि पर खिला शिरीष
गिरिजा से बोले विहँस, देखो मौन मनीष
देखो मौन मनीष, न नाहक शोर मचाता
फूल लुटाता दाम न लेकिन कुछ भी पाता
वैरागी सा खड़ा, मिटाता - खींच न रेख
करता काम न औरों के गुण-अवगुण देख
***
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देख रहे गिरजेश हँस, गिरि पर खिला शिरीष
गिरिजा से बोले विहँस, देखो मौन मनीष
देखो मौन मनीष, न नाहक शोर मचाता
फूल लुटाता दाम न लेकिन कुछ भी पाता
वैरागी सा खड़ा, मिटाता - खींच न रेख
करता काम न औरों के गुण-अवगुण देख
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