रसानंद दे छंद नर्मदा ३३ : सखी छन्द
गुरुवार, ७ जून 2016
दोहा, सोरठा, रोला, आल्हा, सार, ताटंक, रूपमाला (मदन), चौपाई, हरिगीतिका, उल्लाला,गीतिका,घनाक्षरी, बरवै, त्रिभंगी, सरसी, छप्पय, भुजंगप्रयात, कुंडलिनी, सवैया, शोभन या सिंहिका, सुमित्र, सुगीतिका, शंकर, मनहरण (कवित्त/घनाक्षरी), उपेन्द्रवज्रा तथा इंद्रवज्रा छंदों से साक्षात के पश्चात् मिलिए सखी छन्द से
छन्द लक्षण -
सखी मानव जातीय चौदह मात्रिक छन्द है। सखी छन्द के पंक्तयांत में लघु गुरु गुरु (१२२ यगण) या तीन गुरु (२२२ मगण) मात्राएँ होती हैं।
लक्षण छंद -
चौदह सुमात्रा सखी है
हो य-म तुकांती सदा ही।
मानव न भूले हमेशा
है वतन - भाषा पूजा ही।।
संकेत- य-म = यगण या मगण
उदाहरण-
०१. मुक्तिका
*
आँख जब भी बोलती है
राज दिल के खोलती है
.
मन बनाता है बहाना
जुबां गुपचुप तोलती है
*
ख्वाब करवट ले रहे हैं
संग कोशिश डोलती है
*
कामना जनभावना हो
श्वास में रस घोलती है
*
वृत्ति आदिम सगा-साथी
झुका आँख टटोलती है
*
याचनामय दृष्टि, दाता
पेंडुलम संग डोलती है
*
२. राजनीति मायावी है
लोभ नीति ही प्यारी है
लोक नीति से दूरी है
देश भूल मक्कारी है
***
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
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