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शनिवार, 11 जून 2016

muktika

मुक्तिका-
धत्तेरे की
*
आँख खुले भी ठोकर खाई धत्तेरे की
नेता से उम्मीद लगाई धत्तेरे की
.
पूज रहा गोबर गणेश पोंगा पण्डज्जी
अंधे ने आँखें दिखलाई धत्तेरे की
.
चौबे चाहे छब्बे होना, दुबे रह गए
अपनी टेंट आप कटवाई धत्तेरे की
.
अपन लुगाई आप देख के आँख फेर लें
छिप-छिप ताकें नार पराई धत्तेरे की
.
एक कमा दो खरचें, ले-लेकर उधार वे
अपनी शामत आप बुलाई धत्तेरे की
*** 
[अवतारी जातीय सारस छंद]
१-५-२०१६, हरदोई

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