दोहा सलिला
दोहा सलिला
आओ! भेंट शिरीष से, हो जमीन की बात
कैसे हँस जी रहा है, नित सह-सह आघात?
*
खड़ा सिरस निज पैर पर, ज्यों हठयोगी सिद्ध
हाय! नोंचने आ गये, मानव रूपी गिद्ध
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कुछ न किसी से माँगता, करे नहीं अभिमान
देख पराई चूपड़ी, मत ललचा इंसान
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गिरि, घाटी, बस्तियों को, खिल करता गुलज़ार
मनुज काटकर जलाता, कैसा अत्याचार?
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फिर खिलने को झर रहा, सिरस नहीं गमगीन
तनिक कष्ट में क्यों हुआ, मुखड़ा मनुज मलीन?
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