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गुरुवार, 9 जून 2016

muktika

हिंदी ग़ज़ल 
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ब्रम्ह से ब्रम्हांश का संवाद है हिंदी ग़ज़ल। 
आत्म की परमात्म से फ़रियाद है हिंदी ग़ज़ल।।
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मत गज़ाला-चश्म कहना, यह कसीदा भी नहीं।
जनक-जननी छन्द-गण, औलाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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जड़ जमी गहरी न खारिज़ समय कर सकता इसे 
सिया-सत सी सियासत, मर्याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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भार-पद गणना, पदांतक, अलंकारी योजना
दो पदी मणि माल, वैदिक पाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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सत्य-शिव-सुन्दर मिले जब, सत्य-चित-आनंद हो 
आsत्मिक अनुभूति शाश्वत, नाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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नहीं आक्रामक, न किञ्चित भीरु है, युग जान ले 
प्रात कलरव, नव प्रगति का वाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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धूल खिलता फूल, वेणी में महकता मोगरा 
छवि बसी मन में समाई याद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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धीर धरकर पीर सहती, हर्ष से उन्मत्त न हो 
ह्रदय की अनुभूति का, अनुवाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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परिश्रम, पाषाण, छेनी, स्वेद गति-यति नर्मदा 
युग रचयिता प्रयासों की दाद है हिंदी ग़ज़ल ।।
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[महाभागवत जातीय छन्द]
२-५-२०१६ 
सी २५६ आवास-विकास, हरदोई 

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