नवगीत
संजीव
*
खिलखिलाती उषा
हँसकर सिरस संग।
*
कहाँ गौरैया गयी?,
चुप खोजती।
फुदक शाखों पर नहीं
क्यों डोलती?
परागित पुष्पों से
बतियाती पुलक-
रात की बातें बता
रस घोलती।
कुँआरी कलियों में
भर देती उमंग।
महमहाती धूप
मिलकर सिरस संग।
*
बजाते करताल
फलियाँ-बीज बज।
फूल झरते कहें-
'माया- मोह तज।'
छोड़ पत्ते शाख
बैरागिन हुई-
गया कान्हा भूल
कालिंदी-बिरज।
बिसारे बिसरें न
बीते राग-रंग।
मुस्कुराती साँझ
छिपकर सिरस संग।
*
जमीं में जड़ जमी
पतझड़ झेलता।
सिरस बरखा में
किलकता-खेलता।
बन जलावन, शीत
हरता, प्राण दे-
राख होता सिरस
विपदा झेलता।
लड़ रहा अस्तित्व की
नित नयी जंग।
कुनमुनाती रात
जगकर सिरस संग।
****
संजीव
*
खिलखिलाती उषा
हँसकर सिरस संग।
*
कहाँ गौरैया गयी?,
चुप खोजती।
फुदक शाखों पर नहीं
क्यों डोलती?
परागित पुष्पों से
बतियाती पुलक-
रात की बातें बता
रस घोलती।
कुँआरी कलियों में
भर देती उमंग।
महमहाती धूप
मिलकर सिरस संग।
*
बजाते करताल
फलियाँ-बीज बज।
फूल झरते कहें-
'माया- मोह तज।'
छोड़ पत्ते शाख
बैरागिन हुई-
गया कान्हा भूल
कालिंदी-बिरज।
बिसारे बिसरें न
बीते राग-रंग।
मुस्कुराती साँझ
छिपकर सिरस संग।
*
जमीं में जड़ जमी
पतझड़ झेलता।
सिरस बरखा में
किलकता-खेलता।
बन जलावन, शीत
हरता, प्राण दे-
राख होता सिरस
विपदा झेलता।
लड़ रहा अस्तित्व की
नित नयी जंग।
कुनमुनाती रात
जगकर सिरस संग।
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