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रविवार, 24 जून 2012

क्षणिका: कविता कैसे बनती है अर्चना मलैया


क्षणिका:


कविता कैसे बनती है 


अर्चना मलैया
*
भावना के सागर पर 


वेदना की किरण पड़ती है 


भावों की भाप 


मानस पर जमती है. 


धीरे धीरे भाप 


मेघ में बदलती है .


मेघ फटते है , 


बरसात होती है, 


ये नन्ही-नन्ही बूँदें  


कविता होती हैं. 


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1 टिप्पणी:

salil ने कहा…

अर्चना जी
अंतरजाल पर प्रथम रचना प्रकाशन हेतु बधाई.
आपकी क्षणिका गागर में सागर है.