जागरण गीत:
क्यों सो रहा.....
संजीव 'सलिल'
*
क्यों सो रहा मुसाफिर,
उठ भोर रही है.
चिड़िया चहक-चहककर,
नव आस बो रही है.
*
मंजिल है दूर तेरी,
कोई नहीं ठिकाना.
गैरों को माने अपना-
तू हो गया दीवाना.
आये घड़ी न वापिस
जो व्यर्थ खो रही है...
*
आया है हाथ खाली,
जायेगा हाथ खाली.
नातों की माया नगरी
तूने यहाँ बसा ली.
जो बोझ जिस्म पर है
चुप रूह ढो रही है...
*
दिन सोया रात जागा,
सपने सुनहरे देखे.
नित खोट सबमें खोजे,
नपने न अपने लेखे.
आँचल के दाग सारे-
की नेकी धो रही है...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
क्यों सो रहा.....
संजीव 'सलिल'
*
क्यों सो रहा मुसाफिर,
उठ भोर रही है.
चिड़िया चहक-चहककर,
नव आस बो रही है.
*
मंजिल है दूर तेरी,
कोई नहीं ठिकाना.
गैरों को माने अपना-
तू हो गया दीवाना.
आये घड़ी न वापिस
जो व्यर्थ खो रही है...
*
आया है हाथ खाली,
जायेगा हाथ खाली.
नातों की माया नगरी
तूने यहाँ बसा ली.
जो बोझ जिस्म पर है
चुप रूह ढो रही है...
*
दिन सोया रात जागा,
सपने सुनहरे देखे.
नित खोट सबमें खोजे,
नपने न अपने लेखे.
आँचल के दाग सारे-
की नेकी धो रही है...
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
4 टिप्पणियां:
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
सुन्दर गीत के लिए साधुवाद ।
विजय
Ravi Bohra
sundar
pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com ekavita
प्रणाम सलिल जी,
बहुत २ सुंदर उदगारों के लिए आपको नमन
सबमें स्नेह लुटाकर देखें,
कुछ तो सब मिल गाकर देखें|
उम्र करे है लुक छिप सबसे ,
जागें और जगाकर देखें||
मैं जानती हूँ बहुत कुछ 'मिस ' किया है |संभवत; अभी और भ़ी करना होगा|
समय के साथ धीरे२ खोलूँगी और मन की आँखें भरने की चेष्टा करूंगी|
सादर
प्रणव भारती
ksantosh_45@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ०सलिल जी
अति सुन्दर गीत के लिए बधाई।
सन्तोष कुमार सिंह
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