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गुरुवार, 21 जून 2012

:छंद सलिला: घनाक्षरी --संजीव 'सलिल'



:छंद सलिला:
घनाक्षरी 
संजीव 'सलिल'
*
सघन संगुफन भाव का, अक्षर अक्षर व्याप्त.
मन को छूती चतुष्पदी, रच घनाक्षरी आप्त..
तीन चरण में आठ सात चौथे  में अक्षर.
लघु-गुरु मात्रा से से पदांत करते है कविवर..
*
लाख़ मतभेद रहें, पर मनभेद न हों, भाई को हमेशा गले, हँस के लगाइए|

लात मार दूर करें, दशमुख सा अनुज, शत्रुओं को न्योत घर, कभी भी न लाइए|

भाई नहीं दुश्मन जो, इंच भर भूमि न दें, नारि-अपमान कर, नाश न बुलाइए|

छल-छद्म, दाँव-पेंच, द्वंद-फंद अपना के, राजनीति का अखाड़ा घर न बनाइये||
*
जिसका जो जोड़ीदार, करे उसे वही प्यार, कभी फूल कभी खार, मन-मन भाया है|


पास आये सुख मिले, दूर जाये दुःख मिले, साथ रहे पूर्ण करे, जिया हरषाया है|

चाह-वाह-आह-दाह, नेह नदिया अथाह, कल-कल हो प्रवाह, डूबा-उतराया है|

गर्दभ कहे गधी से, आँख मूँद - कर - जोड़, देख तेरी सुन्दरता चाँद भी लजाया है||
(श्रृंगार तथा हास्य रस का मिश्रण)
*
शहनाई गूँज रही, नाच रहा मन मोर, जल्दी से हल्दी लेकर, करी मनुहार है|

आकुल हैं-व्याकुल हैं, दोनों एक-दूजे बिन, नया-नया प्रेम रंग, शीश पे सवार है|

चन्द्रमुखी, सूर्यमुखी, ज्वालामुखी रूप धरे, सासू की समधन पे, जग बलिहार है|

गेंद जैसा या है ढोल, बन्ना तो है अनमोल, बन्नो का बदन जैसे, क़ुतुब मीनार है||
*
ये तो सब जानते हैं, जान के न मानते हैं, जग है असार पर, सार बिन चले ना|


मायका सभी को लगे - भला, किन्तु ये है सच, काम किसी का भी, ससुरार बिन चले ना|

मनुहार इनकार, इकरार इज़हार, भुजहार, अभिसार, प्यार बिन चले ना|

रागी हो, विरागी हो या हतभागी बड़भागी, दुनिया में काम कभी, 'नार' बिन चले ना||
(श्लेष अलंकार वाली अंतिम पंक्ति में 'नार' शब्द के तीन अर्थ ज्ञान, पानी और स्त्री लिये गये हैं.)
*
बुन्देली  

जाके कर बीना सजे, बाके दर सीस नवे, मन के विकार मिटे, नित गुन गाइए|  

ज्ञान, बुधि, भासा, भाव, तन्नक हो अभावबिनत रहे सुभाव, गुनन सराहिए|

किसी से नाता लें जोड़, कब्बो जाएँ नहीं तोड़फालतू करें होड़, नेह सों निबाहिए|  

हाथन तिरंगा थाम, करें सदा राम-राम, 'सलिल' से हों वाम, देस-वारी जाइए||


छत्तीसगढ़ी

अँचरा मा भरे धान, टूरा गाँव का किसानधरती मा फूँक प्राण, पसीना बहावथे|  

बोबरा-फार बनाव, बासी-पसिया सुहावमहुआ-अचार खाव, पंडवानी भावथे|

बारी-बिजुरी बनाय, उरदा के पीठी भाय, थोरको ओतियाय, टूरी इठलावथे|  

भारत के जय बोल, माटी मा करे किलोलघोटुल मा रस घोल, मुटियारी भावथे||  


निमाड़ी

गधा का माथा का सिंग, जसो नेता गुम हुयो, गाँव s बटोs वोs, उल्लूs की दुम हुयो

मनख
s को सुभाsव छे, नहीं सहे अभाव छे, हमेसs खांव-खांव छे, आपs से तुम हुयो|

टीला
पाणी झाड़s नद्दी, हाय खोद रएs पिद्दी, भ्रष्टs सरsकारs रद्दी, पता नामालुम हुयो|

 
'सलिल' आँसू वादsला, धsरा कहे खाद ला, मिहsनतs का स्वाद पा, दूरs माsतम हुयो||

मालवी:

दोहा:
भणि ले म्हारा देस की, सबसे राम-रहीम|
जल ढारे पीपल तले, अँगना चावे नीम||


कवित्त
शरद की चांदणी से, रात सिनगार करे, बिजुरी गिरे धरा पे, फूल नभ से झरे|
आधी राती भाँग बाटी, दिया की बुझाई बाती, मिसरी-बरफ़ घोल्यो, नैना हैं भरे-भरे|
भाभीनी जेठानी रंगे, काकीनी मामीनी भीजें, सासू-जाया नहीं आया, दिल धीर धरे|
रंग घोल्यो हौद भर, बैठी हूँ गुलाल धर, राह में रोके हैं यार, हाय! टारे टरे||
 राजस्थानी
जीवण का काचा गेला, जहाँ-तहाँ मेला-ठेला, भीड़-भाड़ ठेलं-ठेला, मोड़ तरां-तरां का|
ठूँठ सरी बैठो काईं?, चहरे पे आई झाईं, खोयी-खोयी परछाईं, जोड़ तरां-तरां का|
चाल्यो बीज बजारा रे?, आवारा बनजारा रे?, फिरता मारा-मारा रे?, होड़ तरां-तरां का.||
नाव कनारे लागैगी, सोई किस्मत जागैगी, मंजिल पीछे भागेगी, तोड़ तरां-तरां का||
हिन्दी+उर्दू
दर्दे-दिल पीरो-गम, किसी को दिखाएँ मत, दिल में छिपाए रखें, हँस-मुस्कुराइए|
हुस्न के ऐब देखें, देखें भी तो नहीं लेखें, दिल पे लुटा के दिल, वारी-वारी जाइए|
नाज़ो-अदा नाज़नीं के, देख परेशान हों, आशिकी की रस्म है कि, सिर भी मुड़ाइए|
चलिए ऐसी चाल, फालतू मचे बवाल, कोई करें सवाल, नखरे उठाइए||
भोजपुरी
चमचम चमकल, चाँदनी सी झलकल, झपटल लपकल, नयन कटरिया|
तड़पल फड़कल, धक्-धक् धड़कल, दिल से जुड़ल दिल, गिरल बिजुरिया|
निरखल परखल, रुक-रुक चल-चल, सम्हल-सम्हल पग, धरल गुजरिया|
छिन-छिन पल-पल, पड़त नहीं रे कल, मचल-मचल चल, चपल संवरिया||
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9 टिप्‍पणियां:

रामशंकर दुबे ने कहा…

Ramshanker...

व्‍यक्‍ित न े जीवन को इस कदर जहरीला बना लिया है कि उसमें अपनों को छोड बाकी सबके लिए जगह है हमें इस हालात को बदलने की पहल करनी होगी आध्खुौर हर हाल में खुद से ही इसकी शुरुआत करनी होगी
धन्‍यवाद
रामशंकर दुबे

Loon Karan... ने कहा…

Loon Karan...

fine

Mathurtms... ने कहा…

Mathurtms...

nice sir n good morning

- kanuvankoti@yahoo.com ने कहा…

- kanuvankoti@yahoo.com

परम आदरणीय संजीव जी,
घनाक्षरी छन्द के बारे जानकारी देकर हमारा ज्ञान बढ़ाया, आपको नमन, बारम्बार नमन !
सादर,
कनु

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आ.
आप मंच पर आते हैं,
बहुत कुछ सिखा जाते हैं|

धन्यवाद आपका
सादर
प्रणव भारती

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आदरणीय संजीव जी ,

बहुत ज्ञान वर्धक जानकारी .

आभार

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आदरणीय आचार्य जी ,
आपको तो सरस्वती सिद्ध है | काव्य की कोई विधा ऐसी नहीं जिस पर आपकी लेखनी के चमत्कार की छाप न हो|व्याकरण शिल्प और भाव का ऐसा अदभुत सामंजस्य आपकी रचना में
व्याप्त रहता है कि पाठक दंग रह जाता है|
नमन आपकी लेखनी को!
सादर,
कमल

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

Pranava Bharti ✆ pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आप तो कमाल हैं ,
बेमिसाल हैं......
बहुत बहुत आदर सहित
प्रणव भारती

Asha Saxena ने कहा…

Asha Saxena

बहुत सारगर्भित घनाक्षरी |
आशा