गीत:
संग समय के...
संजीव 'सलिल'
*
*
संग समय के चलती रहती सतत घड़ी.
रहे अखंडित कालचक्र की मौन कड़ी.....
*
छोटी-छोटी खुशियाँ मिलकर जी पायें.
पीर-दर्द सह आँसू हँसकर पी पायें..
सभी युगों में लगी दृगों से रही झड़ी.....
*
अंकुर, पल्लव, कली, फूल, फल, बीज बना.
सीख न पाया झुकना तरुवर रहा तना।
तूफां ने आ शीश झुकाया व्यथा बड़ी.....
*
दूब डूब जाती पानी में- मुस्काती.
जड़ें जमा माटी में, रक्षे हरियाती..
बरगद बब्बा बोले रखना जड़ें गडी.....
*
वृक्ष मौलश्री किसको हेरे एकाकी.
ध्यान लगा खो गया, नगर अब भी बाकी..
'ओ! सो मत', ओशो कहते: 'तज सोच सड़ी'.....
*
शैशव यौवन संग बुढ़ापा टहल रहा.
मचल रही अभिलाषा देखे, बहल रहा..
रुक, झुक, चुक मत, आगे बढ़ ले 'सलिल' छड़ी.....
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
संग समय के...
संजीव 'सलिल'
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*
संग समय के चलती रहती सतत घड़ी.
रहे अखंडित कालचक्र की मौन कड़ी.....
*
छोटी-छोटी खुशियाँ मिलकर जी पायें.
पीर-दर्द सह आँसू हँसकर पी पायें..
सभी युगों में लगी दृगों से रही झड़ी.....
*
अंकुर, पल्लव, कली, फूल, फल, बीज बना.
सीख न पाया झुकना तरुवर रहा तना।
तूफां ने आ शीश झुकाया व्यथा बड़ी.....
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दूब डूब जाती पानी में- मुस्काती.
जड़ें जमा माटी में, रक्षे हरियाती..
बरगद बब्बा बोले रखना जड़ें गडी.....
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वृक्ष मौलश्री किसको हेरे एकाकी.
ध्यान लगा खो गया, नगर अब भी बाकी..
'ओ! सो मत', ओशो कहते: 'तज सोच सड़ी'.....
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शैशव यौवन संग बुढ़ापा टहल रहा.
मचल रही अभिलाषा देखे, बहल रहा..
रुक, झुक, चुक मत, आगे बढ़ ले 'सलिल' छड़ी.....
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in
5 टिप्पणियां:
Tripti
wonderful lines
you have made my day!
wonderful gift.
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
रुचिकर और मोहक..........!
साधुवाद !
सादर,
दीप्ति
vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० ’सलिल’ जी,
अंकुर, पल्लव, कली, फूल, फल, बीज बना.
सीख न पाया झुकना तरुवर रहा तना।
तूफां ने आ शीश झुकाया व्यथा बड़ी.....
अति सुन्दर ! बधाई ।
विजय
pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आ. सलिल जी
सत्य
शैशव,यौवन संग बुढापा टहल रहा,,,,,,बहुत सुंदर
पल-पल देखें नन्हा बच्चा ऐसे क्यों है मचल रहा.........
छड़ी देखकर दादा की जाने क्यों वो संभल रहा|
दादा के जूते पहनूंगा तब शाला को जाऊँगा ,
गीली आँखें करके दादा जाने क्यों हो विकल रहा?
समय चक्र यूं ही चलता है,
सुनो-गुनो हम सबसे पल-पल कहता है||
सादर
प्रणव भारती
sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ० आचार्य जी,
प्रेरक गीत के लिये साधुवाद !
विशेष -
छोटी-छोटी खुशियाँ मिलकर जी पायें.
पीर-दर्द सह आँसू हँसकर पी पायें..
सभी युगों में लगी दृगों से रही झड़ी....
सादर
कमल
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