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शुक्रवार, 1 जून 2012

नवगीत: आँख में आंसू ... --संजीव 'सलिल'

नवगीत:
आँख में आंसू ...
संजीव 'सलिल'
*

*
आँख में आँसू,
अधर पर मुस्कराहट...
*

भोर से संझा तलक
सूरज बिचारा,
कर रहा बेगार
बेबस थका-हारा.
अमलतासी दुपहरी ने
हँस गुहारा.
गुलमोहर ने बाँह में
भर-हँस निहारा.
सारिका-शुक के
हृदय में छटपटाहट...
*

पुदीना, अमिया,
नमक, गुड़, मिर्च चटनी.
प्याज-रोटी खा
नचेगी हवा कुटनी.
लू-लपट बनकर
सताए हाय नटनी.
कब रुकेगी हाय!
खुशहाली ये घटनी.
तरावट की चाल में
है लड़खड़ाहट...
*

फट रही छाती,
धरा है विकल प्यासी.
कटे जंगल, खो गये
पंछी प्रवासी.
खुद गये पर्वत,
दसों दिश है उदासी.
तोडती दम नदी
वीरानी हुलासी.
आयी गर्मी
खो गयी है चहचहाहट...
***
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in







12 टिप्‍पणियां:

- anuragtiwarifca@yahoo.in ने कहा…

Respected Salil ji,

Greeshm ritu kaa sajeev chitran.

Anurag Tiwari

drdeepti25@yahoo.co.in ने कहा…

deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आदरणीय संजीव जी,

ग्रीष्म ऋतु का बड़ा ही सजीव चित्र खींचा है! 'अमलातासी दुपहरी' प्रयोग सुन्दर है !
फट रही छाती,
धरा है विकल प्यासी.
कटे जंगल, खो गये
पंछी प्रवासी.
खुद गये पर्वत,
दसों दिश है उदासी. दिशा
तोडती दम नदी
वीरानी हुलासी.

उत्तम अभिव्यक्ति !
ढेर सराहना के साथ,
सादर,
दीप्ति

PRAN SHARMA ने कहा…

SEEDHE - SAADE SHABDON MEIN SEEDHE -
SAADE BHAAV MAN KO BHAA GAYE HAIN .
BAHUT SUNDAR .

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आया. सलिल जी
गर्मी के मौसम ने सुखा दिया है,
प्याज,चटनी खिलाकर हवा को भ़ी नचा दिया है.....|
बहुत २सुन्दर प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति ..........
कटे जंगल ,खो गये
पंछी प्रवासी ..........पीड़ा की अभिव्यक्ति
अति सूक्ष्म प्रभावशाली चित्रण ........
बधाई
सादर
प्रणव भारती

pran sharma, UK ने कहा…

SEEDHE - SAADE SHABDON MEIN SEEDHE -
SAADE BHAAV MAN KO BHAA GAYE HAIN .
BAHUT SUNDAR .



PRAN SHARMA

बेनामी ने कहा…

anuragtiwarifca

Respected Salil ji,

Greeshm ritu kaa sajeev chitran.

Anurag Tiwari

achal verma ✆ ekavita ने कहा…

प्रकृति सदा सुन्दरी , हमारा दृष्टिकोण व्यवसाई
कभी धूप मीठा लगता और कभी कभी परछाई ।
एक अत्यंत रोचक और मार्मिक शब्द चित्र के लिए बधाई के साथ
आचार्य श्री को सादर नमन ।

अचल वर्मा

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आ० आचार्य जी,
सचित्र सुन्दर रचना के लिये साधुवाद !
प्रथम चित्र को देख कर उपजे भाव -
आँख के आंसू दिखे पर अधर की मुस्कराहट छिप गई
बेमुरौव्वत दुनियां में वह कौड़ियों के भाव जैसे बिक गई
सादर
कमल

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

vijay2 ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आ० ‘सलिल’ जी,

इस अति सुन्दर गीत के लिए साधुवाद !

विजय

Anamikaghatak ने कहा…

ग्रीष्म ऋतू का सजीव वर्णन अप से बेहतर कौन कर सकता है .....सलाम

Shesh Dhar Tiwari ने कहा…

Shesh Dhar Tiwari

अद्भुत आचार्य!!!! एक उत्कृष्ट नवगीत.....

subodh srivastava ने कहा…

subodh srivastava

umda navgeet..