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मंगलवार, 29 जून 2010

गीत: आँख का पानी ---संजीव 'सलिल'

नवगीत:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
*
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*
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
सुबह सूरज उगे या संझा ढले.
नहीं पल भर भी कभी निज कर मले.
कहे नानी नित कहानी सुन-गुनो-
श्रम-रहित सपना महज खुद को छले.
जल बचा पौधे लगा
भू को करो धानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
भुलाकर मतभेद सबसे मिल गले.
हो नहीं मन-भेद अपनापन पले.
सभी अपने किसे कहता गैर तू-
तभी तो कुल-दीप के हाथों जले.
ढाई आखर सुन-सुनाने
कहे तू बानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*
कबीरा का ठाठ राजा को खले.
कोई बंधन नहीं मन-मर्जी चले.
ठेठ दिल को छुए साखी क्यों भला?
स्वार्थ सब सर्वार्थ-भट्टी में जले.
जोड़ मरती रिक्त हाथों
जिंदगानी.
आँख का पानी न सूखे,
आँख का पानी...
*

1 टिप्पणी:

ब्लॉगर मै नीर भरी … ने कहा…

कबीरा का ठाठ राजा को खले.
कोई बंधन नहीं मन-मर्जी चले. waah ..kya baat hai .!bahut sunder rachana .badhayi