कुल पेज दृश्य

रविवार, 27 जून 2010

गीत : आँख का पानी -संजीव 'सलिल'

गीत

संजीव 'सलिल'
*
rain%20cloud%202.gif
*
बेचते हो क्यों
कहो निज आँख का पानी?
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....

जानती जनता
सियासत कर रहे हो तुम.
मानती-पहचानती
छल कर रहे हो तुम.
हो तुम्हीं शासक-
प्रशासक न्याय के दाता.
आह पीड़ा दाह
बनकर पल रहे हो तुम.
खेलते हो क्यों
गँवाकर आँख का पानी?
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....

लाश का
व्यापार  करते शर्म ना आई.
बेहतर तुमसे
दशानन ही रहा भाई.
लोभ ईर्ष्या मौत के
सौदागरों सोचो-
साथ किसके गयी
कुर्सी  साथ कब आई?
फेंकते हो क्यों
मलिनकर आँख का पानी?
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....

गिरि सरोवर
नदी जंगल निगल डाले हैं.
वसन उज्जवल
पर तुम्हारे हृदय काले हैं.
जाग जनगण
फूँक देगा तुम्हारी लंका-
डरो, सम्हलो
फिर न कहना- 'पड़े लाले हैं.'
बच लो कुछ तो 
जतन कर आँख का पानी
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....
*

12 टिप्‍पणियां:

Dr.M.C. Gupta ने कहा…

सलिल जी,

बहुत अच्छा लिखा है.

कुछ सुझाव:


सौदागरों सोचो
>> सौदागरो सोचो-



बच लो कुछ तो
जतन कर आँख का पानी

>>
बचा लो कुछ तो
जतन कर आँख का पानी


--ख़लिश

=================

ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
" आँख का पानी " की एक और ललकार आपकी लेखनी से |
बात बेमानी नहीं है , पर उनकी समझ में आनी नहीं है |
कमल

Devendra : ने कहा…

bahut achchhi Shayari.Khaas baat yeh hai ki bolchaal ki bhashaa ka upyog kiya gayaa aurr aam log hi is shayari mein baste hain.Dhanyavaad:

गिरीश बिल्लोरे, ने कहा…

एक ज़रूरी सवाल है......
वाह सलिल जी वाह
बेचते हो क्यों
कहो निज आँख का पानी?
मोल समझो
बात का यह है न बेमानी....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक, ने कहा…

बहुत ही सुन्दर गीत!

प्रवीण पाण्डेय, ने कहा…

संवेदनाओं को जाग्रत करता हुआ !

संदेश प्रेषित करती कविता ।

neelam upadhyay ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना प्रस्तुत कइले बानी सलिल जी । एकर खातिर बहुत-बहुत धन्यवाद ।

prabhakar pandey 'gopalpuriya ने कहा…

सादर नमस्कार सलिलजी।। बहुत ही उत्कृष्ट एवं सार्थक रचना। सादर आभार।।

kuldeep kumar shrivastav ने कहा…

bahut badia Rachna... sadar aabhar !!

divakar mani ने कहा…

बच लो कुछ तो
जतन कर आँख का पानी...

का बात कहले बानीं भाई सलिल जी। बहुत सुन्दर...

yograj prabhakar ने कहा…

आचार्य जी इस बहुत अर्थपूर्ण गीत के लिए मेरा साधुवाद स्वीकार कीजिये !

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

वसन उज्जवल
पर तुम्हारे हृदय काले हैं.
जाग जनगण
फूँक देगा तुम्हारी लंका-
डरो, सम्हलो
फिर न कहना- 'पड़े लाले हैं.'
बचा लो कुछ तो
जतन कर आँख का पानी,

Bahut khub acharya jee, ees bhag daud bhari jindgi mey to lag raha hai jaisey logo key aankh ka paani jatey raha hai, bahut sunder abhivyakti aur umdda Vichar, Dhanyavad Acharya jee,