बाल कविता :
तुहिना-दादी
संजीव 'सलिल'
*
तुहिना नन्हीं खेल कूदती.
खुशियाँ रोज लुटाती है.
मुस्काये तो फूल बरसते-
सबके मन को भाती है.
बात करे जब भी तुतलाकर
बोले कोयल सी बोली.
ठुमक-ठुमक चलती सब रीझें
बाल परी कितनी भोली.
दादी खों-खों करतीं, रोकें-
टोंकें सबको : 'जल्द उठो.
हुआ सवेरा अब मत सोओ-
काम बहुत हैं, मिलो-जुटो.
काँटें रुकते नहीं घड़ी के
आगे बढ़ते जायेंगे.
जो न करेंगे काम समय पर
जीवन भर पछतायेंगे.'
तुहिना आये तो दादी जी
राम नाम भी जातीं भूल.
कैयां लेकर, लेंय बलैयां
झूठ-मूठ जाएँ स्कूल.
यह रूठे तो मना लाये वह
वह गाये तो यह नाचे.
दादी-गुड्डो, गुड्डो-दादी
उल्टी पुस्तक ले बाँचें.
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम
सलिल.संजीव@जीमेल.कॉम
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 7 जून 2010
बाल कविता: गुड्डो-दादी संजीव 'सलिल'
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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2 टिप्पणियां:
नन्हे बिटवा संजीव भाई
चिरंजीव भवः
आपकी की कविता गुड्डो दादी पढ़ी हंसी बंद ही नहीं हुई
जी भाई एक प्रश्नं आपके चित्रों में महा कवित्री महादेवी वर्मा जी का चित्र तो आप क्या आप उनके सुपुत्र
क्षमा करना आपस...
महीयसी महादेवी जी मेरी बुआ थीं. पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों का सुफल मुझे उनके स्नेह-आशीष का पात्र बना गया. उनके साथ बिताये पल मेरे जीवन की अनमोल निधि है.
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