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रविवार, 6 जून 2010

कथा-गीत: मैं बूढा बरगद हूँ यारों... ---संजीव 'सलिल'

कथा-गीत:
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...
संजीव 'सलिल'
*
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*
मैं बूढा बरगद हूँ यारों...

है याद कभी मैं अंकुर था.
दो पल्लव लिए लजाता था.
ऊँचे वृक्षों को देख-देख-
मैं खुद पर ही शर्माता था.

धीरे-धीरे मैं बड़ा हुआ.
शाखें फैलीं, पंछी आये.
कुछ जल्दी छोड़ गए मुझको-
कुछ बना घोंसला रह पाये.

मेरे कोटर में साँप एक
आ बसा हुआ मैं बहुत दुखी.
चिड़ियों के अंडे खाता था-
ले गया सपेरा, किया सुखी.

वानर आ करते कूद-फांद.
झकझोर डालियाँ मस्ताते.
बच्चे आकर झूला झूलें-
सावन में कजरी थे गाते.

रातों को लगती पंचायत.
उसमें आते थे बड़े-बड़े.
लेकिन वे मन के छोटे थे-
झगड़े ही करते सदा खड़े.

कोमल कंठी ललनाएँ आ
बन्ना-बन्नी गाया करतीं.
मागरमाटी पर कर प्रणाम-
माटी लेकर जाया करतीं.

मैं सबको देता आशीषें.
सबको दुलराया करता था.
सबके सुख-दुःख का साथी था-
सबके सँग जीता-मरता था.

है काल बली, सब बदल गया.
कुछ गाँव छोड़कर शहर गए.
कुछ राजनीति में डूब गए-
घोलते फिजां में ज़हर गए.

जंगल काटे, पर्वत खोदे.
सब ताल-तलैयाँ पूर दिए.
मेरे भी दुर्दिन आये हैं-
मानव मस्ती में चूर हुए.

अब टूट-गिर रहीं शाखाएँ.
गर्मी, जाड़ा, बरसातें भी.
जाने क्यों खुशी नहीं देते?
नव मौसम आते-जाते भी.

बीती यादों के साथ-साथ.
अब भी हँसकर जी लेता हूँ.
हर राही को छाया देता-
गुपचुप आँसू पी लेता हूँ.

भूले रस्ता तो रखो याद
मैं इसकी सरहद हूँ प्यारों.
दम-ख़म अब भी कुछ बाकी है-
मैं बूढा बरगद हूँ यारों..
***********************

12 टिप्‍पणियां:

rajiv taneja ने कहा…

rajiv: बहुत बढ़िया

Blogger डा. हरदीप सँधू ... ने कहा…

Bahut hee gahree baat kah dee aap ne.

बीती यादों के साथ-साथ.
अब भी हँसकर जी लेता हूँ.
हर राही को छाया देता-
गुपचुप आँसू पी लेता हूँ.

Yadon ke sath jo jeene vale... un yadon main khushee dhund lete hain.
Apna dard kesee ko na dekha kar khush hone ka ehsas ....bahut hee badee baat hai ji.

Blogger भूतनाथ ... ने कहा…

salil ji......is kavitaa ne mujhe bhigo diyaa....!!

Blogger Rajendra Swarnkar ... ने कहा…

आचार्यश्री संजीव वर्मा 'सलिल'जी की रचनाएं पढ़ना बहुत आनन्ददायक होता है हमेशा ही ।
आप तक मेरा प्रणाम पहुंचे ।

- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

pallav pancholi ने कहा…

संजीव जी...... बहुत खूब......... आपको सदर नमन इंटनी सुंदर रचना हेतु

admin. o.b.o. ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना है आचार्य जी , बार बार पढ़ने को जी चाहता है,

ब्लॉगर गिरीश बिल्लोरे … ने कहा…

वाह क्या बात है

ब्लॉगर आचार्य जी … ने कहा…

अतिसुन्दर।

ब्लॉगर M VERMA … ने कहा…

बहुत सुन्दर
बरगद की व्यथा मार्मिक है

विनोद कुमार पांडेय : ने कहा…

बेहद सुंदर और भावपूर्ण कविता...सलिल जी क्या कहूँ पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया बूढ़ा बरगद को जीवन से जोड़ कर आपने बेहतरीन रचना की है...पूरा कविता एक सांस में पढ़ गया ..बहुत ही बढ़िया लगी..इतनी बेहतरीन कविता प्रस्तुत करने के लिए बहुत बहुत आभार...प्रणाम



विनोद कुमार पांडेय

ब्लॉगर दिलीप … ने कहा…

waah bahut khoob...

Navin C. Chaturvedi : ने कहा…

Facebook :


सलिल जी कितनी खूबसूरती से कितनी सारी बातें आपने पिरो डाली हैं एक ही कविता में| लगता है जैसे अपने जीवन का अनुभव ही उंड़ेल दिया हो| कविता का प्रवाह भी मन को मोहता है|: