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शुक्रवार, 4 जून 2010

गीत : एक टक तुमको निहारूँ.....

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        गीत :
        भाग्य निज पल-पल सराहूँ.....     
        संजीव 'सलिल'
             *
             भाग्य निज पल-पल सराहूँ,
              जीत तुमसे, मीत हारूँ.
              अंक में सर धर तुम्हारे,
              एक टक तुमको निहारूँ.....

नयन उन्मीलित, अधर कम्पित,
 कहें अनकही गाथा.
 तप्त अधरों की छुअन ने,
 किया मन को सरगमाथा.
 दीप-शिख बन मैं प्रिये!
 नीराजना तेरी उतारूँ...
                          
                            हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,
                            मदिर महुआ मन हुआ है.
                            विदेहित है देह त्रिभुवन,
                            मन मुखर काकातुआ है.
                            अछूते  प्रतिबिम्ब की,
                            अँजुरी अनूठी विहँस वारूँ...

 बाँह में ले बाँह, पूरी
 चाह कर ले, दाह तेरी.
 थाह पाकर भी न पाये,
 तपे शीतल छाँह तेरी.
 विरह का हर पल युगों सा,
 गुजारा, उसको बिसारूँ...
                      
                        बजे नूपुर, खनक कँगना,
                        कहे छूटा आज अँगना.
                        देहरी तज देह री! रँग जा,
                        पिया को आज रँग ना.
                        हुआ फागुन, सरस सावन,
                        पी कहाँ, पी कँह? पुकारूँ...

 पंचशर साधे निहत्थे पर,
 कुसुम आयुध चला, चल.
 थाम लूँ न फिसल जाए,
 हाथ से यह मनचला पल.
 चाँदनी अनुगामिनी बन.
 चाँद वसुधा पर उतारूँ...
                
                    *****

चिप्पियाँ: गीत, श्रृंगार, नयन, अधर, चाँद, आँगन, किंशुक, महुआ
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

16 टिप्‍पणियां:

paramjitbali-ps2b ने कहा…

paramjitbali-ps2b (http://paramjitbali-ps2b.blogspot.com/) ने आपकी पोस्ट " गीत : भाग्य निज पल-पल सराहूँ..... ---सं... " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

M VERMA ने कहा…

M VERMA :

पचशर साधे निहत्थे पर
कुसुम आयुध चला, चल
थाम लूँ न फिसल जाये
हाथ से यह मनचलापन
कितना भी थामों फिसल ही जाता है यह मनचलापन
उफ्फ! बेहद खूबसूरत रचना

माधव ने कहा…

माधव :

very nice composition

राजेन्द्र स्वर्णकार शस्वरं ने कहा…

Rajendra Swarnkar :

परम श्रद्धेय आचार्यश्री
प्रणाम !
नेट पर सुंदरतम शब्दावली में श्रेष्ठतम काव्य रचनाएं पढ़ने की प्यास को कहीं तृप्ति मिलती है तो केवल आपके यहां आ'कर ।
मैं तो मुग्ध- सम्मोहित-सा गुनगुना रहा हूं आपका यह गीत पढ़ते हुए
अभी भी … … …

और , किसके हृदय-सागर मे प्रणय-तरंगें उथल-पुथल नहीं मचा देगी , इतना कुछ डूब कर पढ़ लेने के बाद

हुआ किंशुक-कुसुम सा तन,
मदिर महुआ मन हुआ है.

नयन उन्मीलित,अधर कम्पित,कहें अनकही गाथा.
तप्त अधरों की छुअन ने,किया मन को सगरमाथा.

और विविध अलंकारों की उत्पत्ति … देखते ही बनती है
देहरी तज देह री!

आपसे निरंतर प्रेरणाएं मिलती रहे मुझ-से छंद-साधकों को …
आशीर्वाद का अभिलाषी
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं

Divya Narmada ने कहा…

शब्द-स्वर्ण से भाव सुरभि का जब होता है मेल.
तब राजेंद्र शस्वरं करता जग-जीवन से खेल..

girish pankaj ने कहा…

girish pankaj :

rajendra bhai ki baat se mai bhi sahamat hoo. badee tipti milati hai, jab aapke geet parhataa hu.

Divya Narmada ने कहा…

जब गिरीश की हो कृपा, पंकज का भुज-हार.
'सलिल' धन्य स्नेह पा, नेह नर्मदा धार..

गुड्डोदादी … ने कहा…

सुनील जी
आशीर्वाद
बहुत ही सुंदर रचना
धीरे धीरे सभी को पढूंगी
क्षमा याचना पहले नहीं पढीं

राणा प्रताप सिंह ने कहा…

परम श्रद्धेय आचार्य जी के चरणों में सादर प्रणाम

कुछ लिखना तो संभव ही नहीं हो पा रहा है अभी इतना मंत्र मुग्ध हूँ. प्रातः काल से ना जाने कितनी बार पढ़ चुका हूँ. इस रचना को पढ़कर कौन सम्मोहित हुए बिना रह सकता है?..प्रणय रस में डूबने के पश्चात किसके मन की वीणा के तार झंकृत हुए बिना रह सकते हैं?......कहीं स्वप्नलोक में ले जाती है यह कविता............ इतने सुन्दर शब्दों का प्रयोग और अलंकारों का दर्शन तो समुद्र में से मोती खोज लाने के तुल्य है......................

आपके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में.....
राणा प्रताप सिंह
(प्रयाग)

yograj prabhakar ने कहा…

आचार्य जी - गीत की एक एक पंक्ति मानो स्वयं गाती हुई प्रतीत हो रही है ! हमारा अहोभाग्य कि आप जैसी विभूति हम बच्चों का मार्गदर्शन करने के लिए हमारे बीच विधमान है !

Admin on line ने कहा…

नयन उन्मीलित, अधर कम्पित,
कहें अनकही गाथा.
तप्त अधरों की छुअन ने,
किया मन को सरगमाथा.
दीप-शिख बन मैं प्रिये!
नीराजना तेरी उतारूँ...

परम आदरणीय श्रद्धेय आचार्य संजीव "सलिल" जी शत शत नमन, आप जैसे पारस मणि को अपने बीच मे पाकर पूरा ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार धन्य हो गया, बहुत ही सुंदर गीत आपने लिखा है, इस गीत पर कोई भी टिप्पणी करना मेरे बस की बात नहीं है, फिर भी परंपरा को निभाते हुये मैं कुछ लिखने की हिम्मत जुटा पा रहा हू, बहुत ही खुबसूरत अभिव्यक्ति है, एक एक पक्ति अपने आप मे एक गहन अर्थ छुपाये हुये है, बहुत बहुत धन्यबाद है इस रचना के लिये, आगे भी हमे आप के आशीर्वाद का इन्तजार रहेगा

kumari manchan pandey ने कहा…

Bhav bihuval kar deney waali yey geet hai, bahut hi sunder,

preetam tiwary ने कहा…

pranam aacharya jee.....
bahut hi badhiya rachna hai.....
bahut bahut dhanyabaad yahan humlogo ke beech post karne ke liye...

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

आचार्य जी प्रणाम , बहुत ही खुबसूरत और ससक्त रचना दिया है आपने , काफ़ी उम्द्दा रचना, बहुत बहुत धन्यबाद

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

प्रीतम को कंचन करें, होकर सदय गणेश.
तिमिर प्रभाकर से डरे, है प्रताप अनिमेष..

आप सबका धन्यवाद.

asha pandey ojha ने कहा…

bahut hee khub surat geet hai ..padh kar man aanndit hua