कुल पेज दृश्य

सोमवार, 28 जून 2010

कुण्डली : आँख का पानी -- संजीव 'सलिल'


कुण्डली  :

आँख का पानी
 
संजीव 'सलिल'
*






















*
अनिल अनल भू नभ सलिल, पञ्च तत्वमय सृष्टि.
कंकर में शंकर दिखे, अगर खुली हो दृष्टि. .
अगर खुली हो दृष्टि, न तेरा-मेरा सूझे.
पल में हर सवाल को मानव हँसकर बूझे..
नहीं आँख का पानी सूखे, हो न अमंगल.
नेह नर्मदा रहे प्रवाहित कलकल-कलकल..
****
'रहिमन' पानी राखिए, बिन पानी सब सून.
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून..
मोती मानस चून, न चाहें तनिक मलिनता.
जो निर्मल उसके, जीवन में रहे विमलता..
कहे 'सलिल' कविराय, न बोलें कड़वी बानी.
बहे न, रोकें मीत प्रीत की आँख का पानी..
(रहीम के दोहे पर कुण्डली)
******
भाव बिम्ब लय छंद रस, खोज रहे हैं ठाँव.
शब्दाक्षर से मिल गले, पहुँचे कविता-गाँव..
पहुँचे कविता-गाँव, आँख का पानी बोले
दरवाज़े दिल के दिल खातिर रखना खोले..
.अलंकार से मिल गले, दे सबको आनंद.
काव्य-कामिनी मोह ले भाव बिम्ब लय छंद..
*******

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: