कुछ द्विपदियाँ :
संजीव 'सलिल'
वक्-संगति में भी तनिक, गरिमा सके न त्याग.
राजहंस पहचान लें, 'सलिल' आप ही आप..
*
चाहे कोयल-नीड़ में, निज अंडे दे काग.
शिशु न मधुर स्वर बोलता, गए कर्कश राग..
*
रहें गृहस्थों बीच पर, अपना सके न भोग.
रामदेव बाबा 'सलिल', नित करते हैं योग..
*
मैकदे में बैठकर, प्याले पे प्याले पी गये.
'सलिल' फिर भी होश में रह, हाय! हम तो जी गए..
*
खूब आरक्षण दिया है, खूब बाँटी राहतें.
झुग्गियों में जो बसे, सुधरी नहीं उनकी गतें..
*
थक गए उपदेश देकर, संत मुल्ला पादरी.
सुन रहे प्रवचन मगर, छोड़ें नहीं श्रोता लतें.
*
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
बुधवार, 23 जून 2010
कुछ द्विपदियाँ : संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
-Acharya Sanjiv Verma 'Salil',
/samyik hindi kavya,
chhand,
Contemporary Hindi lyric,
Contemporary Hindi Poetry,
dwipadee

सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें