कुल पेज दृश्य

शनिवार, 26 जून 2010

हाइकु गीत: आँख का पानी संजीव 'सलिल'

हाइकु गीत:

आँख का पानी

संजीव 'सलिल'
*



        









                  


*
आँख का पानी,
        मर गया तो कैसे
              धरा हो धानी?...
             *
तोड़ बंधन
आँख का पानी बहा.
रोके न रुका.

             आसमान भी
             हौसलों की ऊँचाई
             के आगे झुका.

कहती नानी
       सूखने मत देना
               आँख का पानी....
            *
रोक न पाये
जनक जैसे ज्ञानी
आँसू अपने.

           मिट्टी में मिला
           रावण जैसा ध्यानी
           टूटे सपने.

आँख से पानी
      न बहे, पर रहे
             आँख का पानी...
             *
पल में मरे
हजारों बेनुगाह
गैस में घिरे.

           गुनहगार
           हैं नेता-अधिकारी
           झूठे-मक्कार.

आँख में पानी
       देखकर रो पड़ा
              आँख का पानी...
              *
-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

12 टिप्‍पणियां:

Braj Kishore Singh ने कहा…

had to yah hai ki itane dinon se hamen thaga ja raha hai aur hamen pata tak nahin hai.:

Reply to this email to comment on this status.

राणा प्रताप सिंह Rana ने कहा…

acharya ji bahut sundar rachana....:

ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी,
कविता की अनेक विधाओं पर आपका पूर्ण अधिकार देख विस्मय होता है |
हाइकु सभी एक से एक अच्छे लगे | बधाई !
कमल

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

विद्यार्थी का नही विधा पर होता है किंचित अधिकार.
आप श्रेष्ठ जन आशिष देते, नत मस्तक करता स्वीकार.

निर्मला कपिला ने कहा…

मै भी नत्मस्तक हूँ स्वीकार करें। उम्र से बडा होना मायने नही रखता बेशक मैं उम्र मे बडी हूँ मगर आप प्रतिभा मे मुझ से बडे हैं इस लिये मेरा नत्मस्तक होना स्वीकार करें। धन्यवाद्

yograj prabhakar ने कहा…

आचार्य जी, हाइकु गीत पढने का सौभाग्य पहली बार आपके सौजन्य से प्राप्त हुआ है ! बहुत बाकमाल लिखा है आपने, 5-7-5 का मीटर भी कायम रखा और बात भी बड़े सुंदर ढंग से कह दी ! दिल से साधुवाद है आपको आचार्य जी !

satish mapatpuri ने कहा…

गुनहगार
हैं नेता-अधिकारी
झूठे-मक्कार.

आँख में पानी
देखकर रो पड़ा
आँख का पानी...
आचार्य जी, बस सादर नमन के साथ यही कह सकता हूँ - अतिउत्तम. धन्यवाद

Meenu Khare … ने कहा…

बहुत मन भाई आपकी कविता.बधाई स्वीकारें.

ब्लॉगर प्रवीण पाण्डेय … ने कहा…

सुन्दर ।

ब्लॉगर गिरीश बिल्लोरे … ने कहा…

वाह संजीव जी वाह क्या बात है

satish mamtapuri ने कहा…

गुनहगार
हैं नेता-अधिकारी
झूठे-मक्कार.

आँख में पानी
देखकर रो पड़ा
आँख का पानी...
आचार्य जी, बस सादर नमन के साथ यही कह सकता हूँ - अतिउत्तम. धन्यवाद.

prabhakar pandey ने कहा…

सलिलजी की तो सारी रचनाएँ उत्कृष्ट एवं बेजोड़ होती हैं। हाइकु भी एकदम यथार्थ।। सादर।।