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बुधवार, 2 जून 2010

मुक्तिका: मानव विषमय.......... --संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:
मानव विषमय...
संजीव 'सलिल'
*











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मानव विषमय करे दंभ भी. 
देख करे विस्मय भुजंग भी..

अपनी कटती देख तंग पर.
काटे औरों की पतंग ही..

उड़ता रंग पोल खुलती तो
होली खेले विहँस रंग की..

सत्ता पर बैठी माया से
बेहतर लगते हैं मलंग जी.

होड़ लगी फैशन करने की
'ही' ज्यादा या अधिक नंग 'शी'..

महलों में तन उज्जवल देखे
लेकिन मन पर लगी जंग थी..

पानी खोकर पूजें उसको-
जिसने पल में 'सलिल' गंग पी..
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दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम  

2 टिप्‍पणियां:

prajyanp pandepragya ने कहा…

- waah salil ji kammal ki rachana likhi hai .. bahut badhaayi...10:58 pm

Divya Narmada ने कहा…

- paa pragya se sarahana 'salil' ho gaya dhanya.
kaheen n pragya se nikat paya koee anya..