
गीत: देश पे जान लुटाएंगे...... ---आचार्य संजीव 'सलिल'
जियें देश के लिए हमेशा, देश पे जान लुटाएंगे......
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गुरु अफजल हों या कसाब हो,अपराधी हत्यारे हैं.
द्रोही हैं ये राष्ट्र-धर्म के, ज़हर बुझे दोधारे हैं..
पालेंगे हम अगर इन्हें तो, निश्चय ही पछतायेंगे-
बोझ धरा का दें उतार, धरती पर स्वर्ग बसायेंगे.
पाक बना नापाक अगर, हम नामो-निशाँ मिटायेंगे.
जियें देश के लिए हमेशा, देश पे जान लुटायेंगे......
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औरों के अधिकार मानता जो उसको अधिकार मिले.
जो औरों का जीवन छीने, उसे सिर्फ तलवार मिले..
षड्यंत्री गद्दारों के प्रति दया-रहम अपराध है-
चौराहे पर सूली देना, देशभक्त की साध है..
व्यर्थ अपीलों का मौका दे, गलती क्यों दोहरायेंगे?...
जियें देश के लिए हमेशा, देश पे जान लुटायेंगे......
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9 टिप्पणियां:
संजीव भाई! आशीर्वाद बहुत ही अच्छी भावपूर्ण है आपकी कवित प्रश्नं की कितने समझ पाते हैं
बात तो आपकी सरल है पर बहुत ही घने भाव है छुपे हुए कविता में
बहुत ही सुन्दर मनोभावात्मक अभिव्यक्ति आचार्य श्री । पर आजकल देशभक्ति तो दूर, देशभक्ति के गीत भी सिर्फ राष्ट्रीय पर्व या चुनाओं में ही सुनने को मिलते हैं । आपकी ये देशभक्तिमय रचना दिल को सुकून देने वाली और एक सुखद अनुभूतियुक्त आशा जगाने वाली है । नमन आचायश्री ।।
शिक्षा और समाज में, हुआ उपेक्षित देश.
इसीलिये तो झेलते, हैं हम इतना क्लेश.
चाहे जो अपमान कर, दे जाता आदेश.
राष्ट्र-धर्म को भूलकर, आती शर्म न लेश..
आती शर्म न लेश,देश की खाकर रोटी..
गाते गीत यहां के, लेकिन नीयत खोटी
बहुत अच्छी रचना.. देश-भक्ति से ओत-प्रोत...
षड्यंत्री गद्दारों के प्रति दया-रहम अपराध है-
चौराहे पर सूली देना, देशभक्त की साध है..
बहुत अच्छी पंक्तियां.
josh bhar diya...kash ye josh jinda rahe...
शानदार!!
जय श्री कृष्ण...आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा...बहुत अच्छा लिखा हैं आपने.....भावपूर्ण...सार्थक
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