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गुरुवार, 14 मई 2009

अमर पंक्तियाँ....


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स्व. रामकृष्ण श्रीवास्तव, जबलपुर

जो कलम सरीखे टूट गए पर झुके नहीं,
उनके आगे यह दुनिया शीश झुकाती है.
जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गयी,
वह तो मशाल की तरह उठाई जाती है..

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2 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

प्रेरक पंक्तियाँ. पूरा जीवन दर्शन...गागर में सागर, स्व. रामकृष्ण श्रीवास्तव की और रचनाएँ पढना को मिलें तो मजा आ जाये.

chhaya trivadi ने कहा…

prerak panktiyan