कुल पेज दृश्य

शनिवार, 16 मई 2009

काव्य किरण: माँ का होना - पुष्पलता शर्मा

माँ का होना शिलाजीत है...

उसका दर्शन, उसकी वाणी,
उसका इस दुनिया में होना,
खोकर-पाना, पाकर-खोना-
मन-आँगन में सपने बोना।

ऋचा, कीर्तन , भजन, प्रार्थना
सामवेद का प्रथम गीत है...

उसकी पीड़ा, उसके आँसू,
उसके कोमल प्रेम-प्रकम्पन,
साधे-साधे, बाँधे-बाँधे,
मन कोटर के ये स्पंदन।

प्रेम जलधि के जल से उपजा
वाल्मीकि का प्रथम गीत है...

मन में चारों धाम समेटे,
जाने कितने काम समेटे,
पाँच पांडवों में बंटती सी-
कुंती सा संग्राम समेटे।

नीलकंठ सा जीवन जीती-
शिव-भगिनी की सी प्रतीत है...

मेरी माँ का अजब तराजू,
उसमें पाँच-पाँच पलडे हैं।
पाँचों को साधे रखने में,
तीन उठे तो दो गिरते हैं।

फ़िर भी हर पलडे में बैठी,
वह सबकी अनबँटी मीत है...

******************************



2 टिप्‍पणियां:

Divya Narmada ने कहा…

मर्मस्पर्शी-मधुर गीत, माँ की याद को ताज़ा कर गया.

आशा ने कहा…

माँ का होना शिलाजीत...अछूता प्रतीक. रचना मन को छू गयी.