सनातन सलिल नर्मदा तट पर स्थित संस्कारधानी जबलपुर में १२ जुलाइ १९८७ को जन्मा अग्निभ तरुणाई में परिपक्व चिंतन तथा प्रांजल भाषा से संपन्न है. डॉ. सुचेता तथा डॉ. अंकुर मुखर्जी का पुत्र अग्निभ मास्को (रूस) में चिकित्सा विज्ञानं का छात्र है. प्रस्तुत है अग्निभ की एक रचना 'यामिनी'.
विपुलक विपुला विपिन अधर में,
श्वेत दुकूल लिपट.
अंतर आकुल अखिल अँधर से,
धारण कर नव पट.
जल-विप्लव में बहे तड़ित शशि,
राज तरंगिणी हे!
बहती चंचल, कल-कल सुरमय
सरित-सुधा बन के.
माधवियों का दल परिमलमय
आभा करे वरण.
चारु चन्द्र की तरि तिमिर से
मनु मन करे तरण.
विपुलक विपुला विपिन अँधर में
श्वेत दुकूल लिपट.
अभिरत पवनाधूत अजहर से
श्यामल तेरे लट.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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गुरुवार, 7 मई 2009
काव्य कल्लोल : यामिनी -अग्निभ मुखर्जी
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काव्य कल्लोल : यामिनी -अग्निभ मुखर्जी
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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