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गुरुवार, 7 मई 2009

काव्य कल्लोल : यामिनी -अग्निभ मुखर्जी

सनातन सलिल नर्मदा तट पर स्थित संस्कारधानी जबलपुर में १२ जुलाइ १९८७ को जन्मा अग्निभ तरुणाई में परिपक्व चिंतन तथा प्रांजल भाषा से संपन्न है. डॉ. सुचेता तथा डॉ. अंकुर मुखर्जी का पुत्र अग्निभ मास्को (रूस) में चिकित्सा विज्ञानं का छात्र है. प्रस्तुत है अग्निभ की एक रचना 'यामिनी'.

विपुलक विपुला विपिन अधर में,

श्वेत दुकूल लिपट.

अंतर आकुल अखिल अँधर से,

धारण कर नव पट.

जल-विप्लव में बहे तड़ित शशि,

राज तरंगिणी हे!

बहती चंचल, कल-कल सुरमय

सरित-सुधा बन के.

माधवियों का दल परिमलमय

आभा करे वरण.

चारु चन्द्र की तरि तिमिर से

मनु मन करे तरण.

विपुलक विपुला विपिन अँधर में

श्वेत दुकूल लिपट.

अभिरत पवनाधूत अजहर से

श्यामल तेरे लट.

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1 टिप्पणी:

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