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बुधवार, 27 मई 2009

काव्य किरण: क्षणिकाएँ - देवेन्द्र मिश्रा, छिंदवाडा

अहम्-१




मैंने पूछा-



तुमसे हाल-चाल और



मिला आगे बढ़कर हाथ।



तुम इतराने लगे।



मैंने पूछा-



'किस बात का अहम् तुम्हें?'



तुमने कहा-



'बस, इसी बात का।'




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अहम् २



चलो माना कि

झुककर आदमी



आधा हो जाता है.

खड़ा रहकर भी



कौन सा तीर मार लेता है?



सिवाय अहम् को पोसने के.




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4 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…
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pramod jain ने कहा…

chuteelee kshanikayen.

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

देवेन्द्र जी!

सामयिक विषयों पर क्षणिका लेखन का कठिन कार्य अपनर सुगमता से किया. धन्यवाद.

ज्योति सिंह ने कहा…

satya aur satik .aham hi aadmi ko kha raha .mere anubhav me main aesi kai ghatna dekh chuki aur dekhati jaa rahi hoon .