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शुक्रवार, 1 मई 2009

नमन नर्मदा: नर्मदा की धार: चंद्रसेन 'विराट'

नर्मदा की धार निर्मल बह रही।
बिन रुके बहना निरंतर जिन्दगी।
यह तटों से कह रही।
धार निर्मल बह रही।

तीर पर ये वृक्ष छाया के सघन।
मुकुट दे देती उन्हें सूरज-किरण।
तीर पर स्थित मांझियों के वास्ते।
पुलिन शासन सह रही।
धार निर्मल बह रही।

शीश पर पनिहारिनें जल-घाट भरे।
भक्त करते स्नान श्रृद्धा से भरे।
युग-युगों से यह कलुष मन-प्राण का।
सब स्वयं में गह रही।
धार निर्मल बह रही।

यह स्फटिक चट्टान की बांहें बढा।
बुदबुदों के फूल की माला चढा।
यह किसी सन्यासिनी सी प्रनत हो।
गुरु-चरण में ढह रही।
धार निर्मल बह रही।

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