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गुरुवार, 28 मई 2009

काव्य-किरण: सरला खरे

साहित्य-पीड़ा


आहत है साहित्य करुण,


करुणा का सागर है कवि।


पावन बूँदें गिर रहीं


तपती रेत पर ॥


*



देश के घर-घर में साहित्य


साहित्य के कर्णधार हैं,


नींव के पत्थर।


*


बैठाये मीडिया ने


मीनारों के कंगूरों पर


साहित्य के पावन स्वरुप का


उपहास करते वानर॥


*


कछुआ-चाल से


चलते हुए भी,


एक दिन साहित्य का


शिखर पर


आधिपत्य होगा।


विद्या का दूषण


कम होगा.


शासन प्रतिभा का होगा।


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4 टिप्‍पणियां:

ज्योति सिंह ने कहा…

aap mere blog pe aaye aur maarg darshan karwa sahi disha ka gyan diya. main kin shabdo me shukriya karoo samajh nahi pa rahi .aap ki sabhi rachana shreshth hai aur aage bhi padkar gyan haasil karti rahungi .

Urmi ने कहा…

बहुत ही शानदार रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है!

pramod jain ने कहा…

kavya-lekhan ke kshetr men apka pravesh shubh ho. aagaz to achchha hai...

प्रो. किरण श्रीवास्तव, रायपुर ने कहा…

मन को छूती रचनाएँ.

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