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शुक्रवार, 8 मई 2009

शब्द-सलिला: गणना -अजित वडनेरकर

गर हम कहें कि सिरों की गिनती से ही सरदार चुने जाते हैं तो इस बात को अटपटा समझा जाएगा। मगर बात सच है। चुनाव को लिए पोल poll शब्द भी भारत में प्रचलित है। पोल, पोलिंग और ओपिनियन पोल जैसे शब्द अब चुनावी संदर्भो में हिन्दी में खूब इस्तेमाल होते हैं। पोल शब्द की व्युत्पत्ति दिलचस्प है।


अंग्रेजी का पोल poll शब्द प्राचीन डच भाषा का है जिसका अर्थ होता है सिर। शरीर का ऊपरी हिस्सा। खासतौर पर वह जिस पर केश हों। प्राचीनकाल में मानव समाज पशुपालक था। विभिन्न समूहों के साथ उनके पालतू पशु भी साथ रहते थे। आमतौर पर इन्हें चिह्मित किया जाता था मगर दिनभर चरागाहों में चरने के बाद शाम को जब ये मवेशी लौटते थे तो इनकी गिनती अनिवार्य तौर पर होती थी। आज भी गांवों में ऐसा ही होता है। पशुओं की गिनती उनके सिर से होती थी।


सिर का प्रतीक सिर्फ इतना ही है कि यह शरीर का वह प्रमुख हिस्सा है जिस पर सबसे पहले नजर पड़ती है। क्योंकि यह शरीर के ऊपरी हिस्से पर होता है। हिन्दी, फारसी, उर्दू का सिर शब्द संस्कृत के शीर्ष से बना है जिसका मतलब होता है सर्वोच्च, सबसे ऊपर। इससे ही फारसी का सरदार शब्द बना है अर्थात प्रमुख व्यक्ति। सरदार में सिरवाला या बड़े सिरवाला जैसा भाव न होकर शीर्ष अर्थात सर्वोच्च का भाव है। यही प्रक्रिया अंग्रेजी में भी प्रमुख व्यक्ति के लिए हैड के संदर्भ में देखी जा सकती है। हैड का अर्थ सिर होता है मगर इसका प्रयोग प्रमुख या प्रधान के तौर पर भी होता है।


पशुगणना से उठकर यह शब्द जन समूहों में किसी मुद्दे पर सबकी राय जानने का जरिया भी बना। जिस मुद्दे पर लोगों की राय जाननी होती है आमतौर पर आज भी सहमति या असहमति व्यक्त करने के लिए सिर हिलाया जाता है। प्राचीनकाल में भी पक्ष और विपक्ष के लोगों के सिर गिनने के बाद बहुमत के आधार पर निर्णय लिया जाता था। इस तरह सिर गिनने की प्रक्रिया किसी मामले पर लोगों की रायशुमारी या निर्वचन का तरीका बन गई।


पशुगणना से होते हुए जन समूहों की रायशुमारी के बाद यही पोल आधुनिक दौर में लोकतात्रिक प्रणाली का आधार बना है। मतपत्र के लिए बैलट शब्द का इस्तेमाल होता है। भाषाविज्ञानियों के मुताबिक यह शब्द भी भारोपीय भाषा परिवार का है। अग्रेजी का बैलट बना है इतालवी के बलोट्टा ballotta से जिसका अर्थ होता है छोटी गेंद।


रोमनकाल में मतों के निर्धारण के लिए नन्हीं गेंदों का प्रयोग किया जाता था। कुछ संदर्भो के अनुसार एक घड़ेनुमा पात्र में मत के प्रतीक स्वरूप ये गेंदें डाली जाती थी जिनकी गणना बाद में की जाती थी। कुछ संदर्भों के अनुसार घड़े मे डाली गई गेंदों में से किसी एक को लाटरी पद्धति से निकाल लिया जाता था।

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