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बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

संस्मरण: सादगी और ईमानदारी की मिसाल राजेंद्र प्रसाद जी महादेवी वर्मा

संस्मरण: 
सादगी और ईमानदारी की मिसाल राजेंद्र प्रसाद जी 
महादेवी वर्मा 
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कवियत्री महादेवी वर्मा जी का एक संस्मरण जो उन्होंने प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद जी के सादगी और कर्तव्यबोध के बारे में लिखा है ...
महादेवी वर्मा जी के शब्दों में :--
" मै एक बार राजेन्द्र प्रसाद जी के धर्मपत्नी जी के साथ राष्ट्रपति भवन में बैठी थी .. वो खुद खाना पका भी रही थी .. वो थाली के चावल बीनते मेरे से बात कर रही थी ... फिर जैसे ही उन्हें पता चला की मै इलाहबाद से हूँ तो उन्होंने मेरे से भोजपुरी में कहा " ये बहिनी हमके चाउर बीनले में बड़ा समय लालेगा .. राऊआ तो इलाहबाद के हई त एक ठो सुपा जवन यूपी अउर बिहार में मिलेला ऊ भेजवा देती त हमके बड़ा आराम रहत"
मतलब "बेटी मुझे चावल बीनने में बहुत समय लगता है ..आप तो इलाहबाद की है तो क्या आप मेरे लिए एक सुपा जो पूर्वी यूपी और बिहार में मिलता है वो भिजवा सकती है ?
महादेवी जी ने कहा क्यों नही .. फिर दो दो हप्तो के बाद दस सुपे लेकर उनके पास गयी .. संयोग से उस समय राजेन्द्र प्रशाद जी भी बैठे थे .. उनकी धर्मपत्नी जी ने सूप ले लिए ..
फिर जानते है बाद में क्या हुआ ??
राजेन्द्र प्रशाद जी के वो सारे सूप राष्ट्रपति भवन के सरकारी मालखाने में जमा करवा दिया ..और अपने धर्मपत्नी जी के कहा की तुम राष्ट्रपति की पत्नी हो तुमको जो भी भेंट मिलेगा वो सरकार का है हमारा नही ..
आज भी वो सारे सूप राष्ट्रपति भवन के मालखाने में रखे है ... और दर्शक एक बार उन्हें देखकर सोच में पड़ जाते है की आखिर ये सूप यहाँ क्यों रखे है

जीतेन्द्र प्रताप जी के सौजन्य से...!!

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