नवगीत
आओ भौंकें
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आओ भौंकें
लोकतंत्र का महापर्व है
हमको खुद पर बहुत गर्व है
चूस रहे खूं बनकर जोंकें
आओ भौंकें
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क्यों सोचें क्या कहाँ ठीक है?
गलत बनाई यार लीक है
पान मान का नहीं सुहाता
दुर्वचनों का अधर-पीक है
मतलब तज, बेमतलब टोंकें
आओ भौंकें
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दो दूनी हम चार न मानें
तीन-पाँच की छेड़ें तानें
गाली सुभाषितों सी भाए
बैर अकल से पल-पल ठानें
देख श्वान भी डरकर चौंकें
आओ भौंकें
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बिल्ला काट रास्ता जाए
हमको नानी याद कराए
गुंडों के सम्मुख नतमस्तक
हमें न नियम-कायदे भाए
दुश्मन देखें झट से पौंकें
आओ भौंकें
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हम क्या जानें इज्जत देना
हमें सभ्यता से क्या लेना?
ईश्वर को भी बीच घसीटे-
पालेे हैं चमचों की सेना।
शिष्टाचार भाड़ में झौंकें
आओ भौंकें
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मजहब के सौदागर हैं हम
बिन पेंदी की गागर हैं हम
दिखी उमा नटराज हुए हम
राधा तो नटनागर हैं हम
खीर हींग-लहसुन में छौंकें
आओ भौंकें
*
१७-४-२०१९
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