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सोमवार, 27 मई 2019

नवगीत: संजीव * पूज रहे हैं खोखले आधार * संसद में बातें ही बातें हैं उठ-पटक, छीन-झपट मातें हैं अपने ही अपनों को छलते हैं- अपने-सपने करते घातें हैं अवमूल्यन का गरम बाज़ार पूज रहे हैं खोखले आधार * तिमिराये दिन, गुमसुम रातें हैं सबब फूट का बनती जातें हैं न्यायालय दुराचार का कैदी- सर पर चढ़, बैठ रही लातें हैं मनमानी की बनी मीनार पूज रहे हैं खोखले आधार * असमय ही शुभ अवसर आते हैं अक्सर बिन आये ही जाते हैं पक्षपात होना ही होना है- बारिश में डूब गये छाते हैं डोक्टर ही हो रहे बीमार पूज रहे हैं खोखले आधार * 27-5-2015

नवगीत:
संजीव
*
पूज रहे हैं 
खोखले आधार 
*
संसद में बातें ही बातें हैं
उठ-पटक, छीन-झपट मातें हैं
अपने ही अपनों को छलते हैं-
अपने-सपने करते घातें हैं
अवमूल्यन
का गरम बाज़ार
पूज रहे हैं
खोखले आधार
*
तिमिराये दिन, गुमसुम रातें हैं
सबब फूट का बनती जातें हैं
न्यायालय दुराचार का कैदी-
सर पर चढ़, बैठ रही लातें हैं
मनमानी
की बनी मीनार
पूज रहे हैं
खोखले आधार
*
असमय ही शुभ अवसर आते हैं
अक्सर बिन आये ही जाते हैं
पक्षपात होना ही होना है-
बारिश में डूब गये छाते हैं
डोक्टर ही
हो रहे बीमार
पूज रहे हैं
खोखले आधार
*
27-5-2015

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