कुल पेज दृश्य

सोमवार, 27 मई 2019

नवगीत

नवगीत:
संजीव
*
ध्वस्त हुए विश्वास किले 
*
जूही-चमेली
बगिया तजकर
वन-वन भटकें
गोदी खेली
कलियाँ ही
फूलों को खटकें
भँवरे करते मौज
समय के अधर सिले
ध्वस्त हुए विश्वास किले
*
चटक-मटक पर
ठहरें नज़रें
फिर फिर अटकें
श्रम के दर की
चढ़ें न सीढ़ी
युव मन ठिठकें
शाखों से क्यों
वल्लरियों के वदन छिले
ध्वस्त हुए विश्वास किले
27-5-2015
*

कोई टिप्पणी नहीं: