अंग्रेजी-हिंदी सेतु
इंगलिश की यादगार कविताओं का हिन्दी में अनुवादकी श्रंखला में पहला अुनुवाद
काव्यानुवाद बीनू भटनागर
A Dream Within A Dream
by Edgar Allan Poe
Take this kiss upon the brow!
And, in parting from you now,
Thus much let me avow--
You are not wrong, who deem
That my days have been a dream;
Yet if hope has flown away
In a night, or in a day,
In a vision, or in none,
Is it therefore the less gone?
All that we see or seem
Is but a dream within a dream.
And, in parting from you now,
Thus much let me avow--
You are not wrong, who deem
That my days have been a dream;
Yet if hope has flown away
In a night, or in a day,
In a vision, or in none,
Is it therefore the less gone?
All that we see or seem
Is but a dream within a dream.
I stand amid the roar
Of a surf-tormented shore,
And I hold within my hand
Grains of the golden sand--
How few! yet how they creep
Through my fingers to the deep,
While I weep--while I weep!
O God! can I not grasp
Them with a tighter clasp?
O God! can I not save
One from the pitiless wave?
Is all that we see or seem
But a dream within a dream?
Of a surf-tormented shore,
And I hold within my hand
Grains of the golden sand--
How few! yet how they creep
Through my fingers to the deep,
While I weep--while I weep!
O God! can I not grasp
Them with a tighter clasp?
O God! can I not save
One from the pitiless wave?
Is all that we see or seem
But a dream within a dream?
स्वप्न में स्वप्न
अनुवाद-बीनू भटनागर
तुम्हारा माथा चूमकर
मैं विदा ले रहा हूँ,
इसलिये खुलकर कहूँगा कि
तुम ग़लत नहीं थी,जो सोचती थीं,
मेरे दिन ,दिवास्प्न हैं, स्वपन!
दिन हो या रात
आशायें धूमिल हो चुकी हैं
जो सोचा नहीं था, जो था ही नहीं
इसलिये बहुत खोया भी नहीं?
जो हम देखते हैं
या महसूस करते हैं वहतो बस
स्वप्न में स्वप्न है।
मैं लहरों के शोर में खड़ा हूँ
संतप्त सागर के तट पर
रेत के कण हाथ में लेता हूँ
इतने कम हैं
फिरभी फिसल रहे हैं
मेरी उंगलियां गहराई में हैं
मैं रोता हूँ, बहुत रोता हूँ
हे प्रभु! क्या मैं इन्हे पकड़े रह सकता हूँ।
क्या मुट्ठी में बाँध सकता हूँ
हे प्रभु!क्या मैं इन्हे निर्दयी लहरों से बचा सकता हूँ।
यही मैं देखता रहता हूँ।
सपनो में सपने...,
स्वप्न मे स्वप्न
मैं विदा ले रहा हूँ,
इसलिये खुलकर कहूँगा कि
तुम ग़लत नहीं थी,जो सोचती थीं,
मेरे दिन ,दिवास्प्न हैं, स्वपन!
दिन हो या रात
आशायें धूमिल हो चुकी हैं
जो सोचा नहीं था, जो था ही नहीं
इसलिये बहुत खोया भी नहीं?
जो हम देखते हैं
या महसूस करते हैं वहतो बस
स्वप्न में स्वप्न है।
मैं लहरों के शोर में खड़ा हूँ
संतप्त सागर के तट पर
रेत के कण हाथ में लेता हूँ
इतने कम हैं
फिरभी फिसल रहे हैं
मेरी उंगलियां गहराई में हैं
मैं रोता हूँ, बहुत रोता हूँ
हे प्रभु! क्या मैं इन्हे पकड़े रह सकता हूँ।
क्या मुट्ठी में बाँध सकता हूँ
हे प्रभु!क्या मैं इन्हे निर्दयी लहरों से बचा सकता हूँ।
यही मैं देखता रहता हूँ।
सपनो में सपने...,
स्वप्न मे स्वप्न
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