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रविवार, 19 मई 2019

मुक्तिका

मुक्तिका 
जिनसे मिले न उनसे बिछुड़े अपने मन की बात है 
लेकिन अपने हाथों में कब रह पाये हालात हैं? 
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फूल गिरे पत्थर पर चोटिल होता-करता कहे बिना 
कौन जानता, कौन बताये कहाँ-कहाँ आघात है?
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शिकवे गिले शिकायत जिससे उसको ही कुछ पता
रात विरह की भले अँधेरी उसके बाद प्रभात है
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मिलने और बिछुड़ने का क्रम जीवन को जीवन देता
पले सखावत श्वास-आस में, यादों की बारात है
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तन दूल्हे ने मन दुल्हन की रूप छटा जब-जब देखी
लूट न पाया, खुद ही लुटकर बोला 'दिल सौगात है'
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