कुल पेज दृश्य

रविवार, 19 मई 2019

दोहा

दोहा सलिला 
देव लात के मानते, कब बातों से बात 
जैसा देव उसी तरह, पूजा करिए तात 
*
चरण कमल झुक लात से, मना रहे हैं खैर 
आये आम चुनाव क्या?, पड़ें पैर के पैर
*
पाँव पूजने का नहीं, शेष रहा आनंद
'लिव इन' के दुष्काल में, भंग हो रहे छंद
*
पाद-प्रहार न भाई पर, कभी कीजिए भूल
घर भेदी लंका ढहे, चुभता बनकर शूल
*
'सलिल न मन में कीजिए, किंचित भी अभिमान
तीन पगों में नाप भू, हरि दें जीवन-दान
*

कोई टिप्पणी नहीं: