प्राचीन भारत में विज्ञान
प्राचीन भारत में विज्ञान की २० से ज्यादा शाखाएँ बहुत पुष्पित-पल्लवित हुई। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण शाखा है खगोल विज्ञान, दूसरी नक्षत्र विज्ञान, तीसरी बर्फ बनाने का विज्ञान, चौथी धातु विज्ञान, भवन निर्माण विज्ञान आदि।
वॉकर ने लिखा "भारत में विज्ञान की ऊंचाई कितनी अधिक है इसका अंदाज़ा हम अंग्रेजों को नहीं लगता।" एक यूरोपीय वैज्ञानिक था कॉपरनिकस, उसके बारे में कहा जाता है की उसने पहली बार बताया सूर्य का पृथ्वी के साथ क्या संबंध है, जिसने पहली बार सूर्य से पृथ्वी की दूरी का अनुमान लगाया और जिसने सूर्य से दूसरे उपग्रहों के बारे में जानकारी सारी दुनिया को दी।
वॉकर कहता है कॉपरनिकस ने की खोज की यह असत्य है। वॉकर के अनुसार अंग्रेजों के हजारों साल पहले भारत के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से सूर्य की दूरी का ठीक-ठीक पता लगा लिया और शास्त्रों में उसको दर्ज़ कराया है।
यजुर्वेद में कई श्लोक हैं जिनसे खगोल शास्त्र का ज्ञान मिलता है। कॉपरनिकस का जिस दिन जन्म हुआ था यूरोप में, उससे ठीक एक हज़ार साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक "आर्यभट्ट" ने पृथ्वी और सूर्य की दूरी बिलकुल ठीक-ठीक बता दी थी, उसे कॉपरनिकस एक इंच भी इधर-उधर नही कर पाया। वही दूरी आज अमेरिका और यूरोप में मान्य है।
खगोल विज्ञान से नक्षत्र विज्ञान का विकास हुआ। भारतीय वैज्ञानिकों ने दिन और रात की लंबाई, समय के आंकड़े निकाले और सारी दुनिया में उनका प्रचार हुआ। रविवार, सोमवार इन सभी दिनों का नामकरण और महर्षि आर्यभट्ट की निकाली हुई है और उनके द्वारा ही ये दिन तय किए हुए हैं। अंग्रेज़ इस बात को स्वीकार करते हैं कि भारत के दिनों को ही उधार लेकर हमने सनडे, मंडे बनाया है। पृथ्वी अपनी अक्ष और सूर्य के चारों ओर घूमती है ये बात सबसे पहले १० वीं शताब्दी में भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रमाणित की थी। पृथ्वी के घूमने से दिन-रात होते हैं, मौसम और जलवायु बदलते हैं, ये बात भी भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा प्रमाणित हुई है सारी दुनिया में। सूर्य के कितने उपग्रह हैं और उनका सूर्य के साथ अंतरसंबंध क्या है ये सारी खोज भारत में तीसरी शताब्दी में हुई थी जब दुनिया में अन्यत्र कोई पढ़ना-लिखना भी नहीं जानता था।
प्राचीन भारत में विज्ञान की २० से ज्यादा शाखाएँ बहुत पुष्पित-पल्लवित हुई। उनमें से सबसे महत्वपूर्ण शाखा है खगोल विज्ञान, दूसरी नक्षत्र विज्ञान, तीसरी बर्फ बनाने का विज्ञान, चौथी धातु विज्ञान, भवन निर्माण विज्ञान आदि।
वॉकर ने लिखा "भारत में विज्ञान की ऊंचाई कितनी अधिक है इसका अंदाज़ा हम अंग्रेजों को नहीं लगता।" एक यूरोपीय वैज्ञानिक था कॉपरनिकस, उसके बारे में कहा जाता है की उसने पहली बार बताया सूर्य का पृथ्वी के साथ क्या संबंध है, जिसने पहली बार सूर्य से पृथ्वी की दूरी का अनुमान लगाया और जिसने सूर्य से दूसरे उपग्रहों के बारे में जानकारी सारी दुनिया को दी।
वॉकर कहता है कॉपरनिकस ने की खोज की यह असत्य है। वॉकर के अनुसार अंग्रेजों के हजारों साल पहले भारत के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों ने पृथ्वी से सूर्य की दूरी का ठीक-ठीक पता लगा लिया और शास्त्रों में उसको दर्ज़ कराया है।
यजुर्वेद में कई श्लोक हैं जिनसे खगोल शास्त्र का ज्ञान मिलता है। कॉपरनिकस का जिस दिन जन्म हुआ था यूरोप में, उससे ठीक एक हज़ार साल पहले एक भारतीय वैज्ञानिक "आर्यभट्ट" ने पृथ्वी और सूर्य की दूरी बिलकुल ठीक-ठीक बता दी थी, उसे कॉपरनिकस एक इंच भी इधर-उधर नही कर पाया। वही दूरी आज अमेरिका और यूरोप में मान्य है।
खगोल विज्ञान से नक्षत्र विज्ञान का विकास हुआ। भारतीय वैज्ञानिकों ने दिन और रात की लंबाई, समय के आंकड़े निकाले और सारी दुनिया में उनका प्रचार हुआ। रविवार, सोमवार इन सभी दिनों का नामकरण और महर्षि आर्यभट्ट की निकाली हुई है और उनके द्वारा ही ये दिन तय किए हुए हैं। अंग्रेज़ इस बात को स्वीकार करते हैं कि भारत के दिनों को ही उधार लेकर हमने सनडे, मंडे बनाया है। पृथ्वी अपनी अक्ष और सूर्य के चारों ओर घूमती है ये बात सबसे पहले १० वीं शताब्दी में भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रमाणित की थी। पृथ्वी के घूमने से दिन-रात होते हैं, मौसम और जलवायु बदलते हैं, ये बात भी भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा प्रमाणित हुई है सारी दुनिया में। सूर्य के कितने उपग्रह हैं और उनका सूर्य के साथ अंतरसंबंध क्या है ये सारी खोज भारत में तीसरी शताब्दी में हुई थी जब दुनिया में अन्यत्र कोई पढ़ना-लिखना भी नहीं जानता था।
"भारत के वैज्ञानिक कितने ज्यादा पक्के हैं गणित में कि चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण का ठीक ठीक समय बता देते हैं सालों पहले।" 'डेनियल डिफ़ों' १७०८ में ये लंदन की संसद में कह रहा है किकहा 'मैंने भारत का पंचांग जब भी पढ़ा है मुझे एक प्रश्न का उत्तर कभी नही मिला कि भारत के वैज्ञानिक कई कई साल पहले कैसे पता लगा लेते हैं कि आज चन्द्र ग्रहण पड़ेगा, आज सूर्य ग्रहण पड़ेगा और
इस समय पर पड़ेगा और सही -सही उसी समय पर पड़ता है।' इसका मतलब भारत के वैज्ञानिकों की खगोल और नक्षत्र विज्ञान में बहुत गहरी शोध है। "
इस समय पर पड़ेगा और सही -सही उसी समय पर पड़ता है।' इसका मतलब भारत के वैज्ञानिकों की खगोल और नक्षत्र विज्ञान में बहुत गहरी शोध है। "
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