नवगीत:
संजीव
*
चलो मिल सूरज उगायें
*
सघनतम तिमिर हो जब
उज्ज्वलतम कल हो तब
जब निराश अंतर्मन-
नव आशा फल हो तब
विघ्न-बाधा मिल भगायें
चलो मिल सूरज उगायें
*
पत्थर का वक्ष फोड़
भूतल को दें झिंझोड़
अमिय धार प्रवहित हो
कालकूट जाल तोड़
मरकर भी जी जाएँ
चलो मिल सूरज उगायें
*
अपनापन अपनों का
धंधा हो सपनों का
बंधन मत तोड़ 'सलिल'
अपने ही नपनों का
भूसुर-भुसुत बनायें
चलो मिल सूरज उगायें
*
27-5-2015
संजीव
*
चलो मिल सूरज उगायें
*
सघनतम तिमिर हो जब
उज्ज्वलतम कल हो तब
जब निराश अंतर्मन-
नव आशा फल हो तब
विघ्न-बाधा मिल भगायें
चलो मिल सूरज उगायें
*
पत्थर का वक्ष फोड़
भूतल को दें झिंझोड़
अमिय धार प्रवहित हो
कालकूट जाल तोड़
मरकर भी जी जाएँ
चलो मिल सूरज उगायें
*
अपनापन अपनों का
धंधा हो सपनों का
बंधन मत तोड़ 'सलिल'
अपने ही नपनों का
भूसुर-भुसुत बनायें
चलो मिल सूरज उगायें
*
27-5-2015
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