देवी स्तवन
तव च का किल न स्तुतिरंबिके सकल शब्दमयी किल ते तनु:।
निखिलमूर्तिषु मे भवदन्वयोमनसिजासु बहि: प्रसरासु च।।
इति विचिंत्य शिवे! शमिताशिवे! जगति जातमयत्नवशादिदिम्।
स्तुतिजपार्चनचिंतनवर्जिता न खलु काचन कालकलास्ति मे।।
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भावानुवाद
किस ध्वनिस्तवन में न माँ, सकल शब्दमय देह।
मन-अंदर-बाहर तुम्हीं, निखिल मूर्ति भव गेह।।
सोच-असोचे भी रहे, शिवे तुम्हारा ध्यान।
स्तुति-जप पूजार्चन रहित, पल न एक भी मान।।
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कौन वांग्मय जो नहीं, करे तुम्हारा गान।
सकल शब्दमय मातु तुम, तुम्हीं तान सुर गान।।
हर संकल्प-विकल्प में, मातु मिले दीदार।
हो भीतर-बाहर तुम्हीं, तुम ही बिंदु प्रसार।।
बिन प्रयास चिंतन बिना, शिवे! तुम्हारा ध्यान।
करे अमंगल ध्वंस हर, हो कल्याण सुजान।।
बिन प्रयास पल-पल रहे, मातु! तुम्हारा ध्यान।
पूजन चिंतन-मनन जप, स्तवन सतत तव गान।।
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संवस
शक संवत् २०७६
५-४-२०१९
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